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________________ २४ प्रस्तावना. कौटिकगणे वहजो तपागल बिरुदधारक जट्टारक श्री जगञ्चंइसरिजी महाराजे पोतानी शिथिनाचार प्रवृत्ति जाणीने चैत्रवानगडीय श्री देवनगणिसंयमीनी समीपे चारित्रोपसंपद अर्थात् फरी दीदा लीधी. ए हेतुथी ज श्री जगचंसूरिजीमहाराजना परमसंविज्ञ श्री देवेंद्र सरिजी शिष्ये श्री धर्मरत्नग्रंथनी टीकानी प्रशस्तिमां पोताना वृहजबीय श्री मणिरत्नसूरिजीनु नाम बोडीने पोताना गुरु श्री जगचंऽसूरिजीने श्री चैत्रवानगडीय श्री देवनगणिपुज्यना शिष्य लख्या.ते पाए ॥क्रमशश्चैत्राबालक, गल्छेकविराजराजिननसीव श्री नवनचंद सूरिर्गुरुरुदियाय प्रवरतेजाः॥॥तस्यविनेयः प्रशमै, कम दिरं देवनगाणपुज्यः शुचिसमयकनकनिकषो, बनूव नूविदितनूरिगुणः ॥ ५॥ तत्पादेपद्मनुंगाः निस्संगाचं गतुंगसंवेगाः संजनितशुबोधाः जगतिजगचंइसरिवराः ॥६॥ तेषामुनौविनेयौ श्रीमान् देवेंऽसूरिरित्याद्यः श्री विजयचंइसरिदितीयकोऽद्वैतकीर्तिनरः ॥ ७ ॥ स्वान्यषो रुपकाराय श्रीमद्देवेंइसरिणा धर्मरत्नस्य टीकेयं, सुखबोधा विनिर्ममे ॥७॥ इत्यादि नवनीत पुरुषोनीमारे पण माझा प्रतिपालन करवानी अनिलाषा प्रवर्ने ने, परीक्षक श्रावक प्रश्न ॥आत्मारामजी आनंदविजयजी तो चतुर्थस्तुतिनिर्णय प्रस्तावना पृष्ट तथा ए मामां
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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