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________________ चतुर्थस्तुतिनिणर्यशंकोद्धारः १.२१ कही. तथा सामायिक लेतां श्रावकने प्रथम करेमि तेने पढी ईरिया वही कहीडे, ते प्रमाणे आत्मारामजी मानता नथी ॥ ॥ए उपरलख्या ग्रंथ के तलाक पूर्वधरनिकटकालवर्त्ति तथा पूर्वधर निकटकालवर्त्ति पीना, आचार्य अथवा पंचांगीकारना करेला ग्रंथ एमां जे प्रमाणे कह्युं ते प्रमाणे आत्मारामजी मानता नथी करतापणनथी. ३१ ॥ २४ ॥ ललित विस्तरा श्रीहरिभद्रसूरीकृत. एमां जिनगृहमां पूजादिविशिष्टकारले च्यार थुइ करवी कही पण प्रतिक्रमणना यादि - तमांकरवी कही नथी ने मां नव अधिकार कावे ते प्रमाणे आत्मारामजी मानता नथी ए ग्रंथ विरहशब्दांकित तथा याकिनीमहत्तरासूनु अंकितचिन्हे करी, उपलक्षितले तेथी केटलाक ग्रंथों ना प्रियथी तो विक्रमसंवत ५८५ तथा विक्रम संवत् ५३५ मां थएला हरिभद्रसूरि सि६थाय ने केटली पहावलियोंना अभिप्रायथी विक्रमसंवत् ९६२ मां थएला हरिभद्रसूरि सिद्ध थायडे तत्त्वतो तत्त्वविद् जांले श्रमारे तो पूर्व
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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