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________________ - - - - - ११७ परिच्छेदः ६ | हर्षपुरीगढीय श्रीअनयदेवसृरिना शिष्य पण देवचंद्रसरिना शिष्य हेमचंद्रसरि न जाणवा ॥ एउपरलख्या ग्रंथ ते पंचांगीनाडे एनमांत्रण थु कही पण च्यारथुइ कही नथी ते आत्मारामजी आनंदविजयजी मानता नथी. २५ ॥ ४२ ॥ पाक्षिकसूत्र ___नथी पण पूर्वाचार्य कृतले. एमां देवसस्कियं एसूत्रनी चूर्णिमा विरति अं. गीकार करणकालमें चैत्यवंदनानो नपचारकरीने अवश्य यथासंनिहित देवतानिकट होय ते वास्ते देवसस्कियं एहवो पाठ पढेडे अर्थात् व्रतादिक अंगीकार करतां नांद समवसरण मांमे त्यारे देवतानंना मंत्ररूपस्तुति तथा चैत्यवंदनामांत्रण थुएं देववादि शांतिनाथ आराधना प्रमुखमां शासनदेव तथा देवदेव प्रमुखना कायोत्सर्गादिक उपचारथी निकटवर्ति देवता साक्षिपणुं अंगीकार करेजे एम कडं पण पमिक्कमणामां चोथी थु तथा देवतानो कानसग करवो चूर्णिमां कह्यो नथी ने पूजोपचारादिअर्थे कह्यो ते प्रमाणे था|त्मारामजी मानता नथी. - -
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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