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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः ए सुंदरतमि ॥ २१ ॥ वोडिन्नेमूलसुए बिंडपमाणंमिसंप धरते आयरणानुनघर परमबोसवकोसु २२ जणियंच। बहुसुयकमाणुपत्ता आयरणाधरइसुत्तविरहेवि विक्षाए विपईचे नधादिसुदिठीहि २३ जीवियपुवंजीव जी. विस्सजेणधम्मियजणमि जीयंतितेपनन्नई आयरणा समयकुसनेहिं २४ तह्माअनायमूला हिंसारहियासुझाजगणीय सूरिपरंपरपत्ता सुत्तवपमाणमायरणा ॥२५॥ ॥व्याख्या॥ ते चैत्यवंदन करवाना निन्नप्रकार एटले जघन्यादि नवप्रकारना विधिनेद केटलाक तो सूत्रधनुसारथी जाएया जायजे. अने केटलाक संविनगीतार्थोनी आचरणाथी जाएया जायडे. अने केटलाकसूत्र अने गीतार्थ आचरणा बेचंथी जाएया जाय. ए पूर्वोक्त त्रण प्रकारथी हुँ चैत्यवंदनानु स्वरूप कहुलु.॥१५॥अवतरण। माहानिशीथसूत्रमा चैत्यवंदनानां सूत्र कह्यां. तथा रा. यपसेपी, जीवानिगमादिक, सूत्रमा शकस्तवादिक नमस्कारे, चैत्यवंदना कही, सूत्रानुसार १ अने श्रीबृहत्कल्प, व्यवहारनाष्यादिकमां जीताचारे पूर्वधरोएं, मध्यमोत्कृष्टविधिएं, चैत्यवंदना कही. ते गीतार्थ श्राचरणा अनुसारे॥२॥ वली श्रीपंचमश्रुतकेवली श्रीजद्रबाहुस्वामीकत वंदनपयन्नोक्त चैत्यवंदनाविधि अनुक्रम. तथा
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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