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________________ ८२३ आभ्यंतर परिणाम अवलोकन-संस्मरणपोथी ? [ संस्मरण-पोथी १, पृष्ठ ११३] ... लोकसंस्थानः?...: : :...... ......... ... धर्म-अधर्म अस्तिकायरूप द्रव्य ? ...... स्वाभाविक अभव्यत्व ? ....... . . . . .:: : ..... : :... अनादि-अनंतका ज्ञान किस तरह ? 'आत्मा संकोच-विकाससे? सिद्ध ऊर्ध्वगमन-चेतन; खंडवत् क्यों नहीं ? ... केवलज्ञानमें लोकालोकका ज्ञातत्व किस तरह ? लोकस्थितिमर्यादा हेतु ?' . . शाश्वतवस्तुलक्षण ? .: ..... ..... उस उस स्थानवर्ती सूर्य चंद्र आदि वस्तु, अथवा नियमित गतिहेतु ? ... दुषम सुषमादि काल ?,' - मनुष्य उच्चत्वादि प्रमाण ? ... अग्निकायादिका निमित्तयोगसे एकदम उत्पन्न होना? . . . . . . . . एक सिद्ध वहाँ अनंत सिद्ध अवगाहना? ....... .. . . '५३ - [संस्मरण-पोथी १, पृष्ठ ११४] ., हेतु अवक्तव्य ? . . एकमें पर्यवसान किस तरह हो सकता है ? . . . . . . . एकम पयवसान किस तरह हो सकता है? ....... अथवा नहीं होता ? - .. . व्यवहार रचना की है, ऐसा किसी हेतुसे सिद्ध होता है ? .. . ... . . स्वस्थिति-आत्मदशाके संबंधमें विचार। . [संस्मरण-पोथी १, पृष्ठ ११५] __ तथा उसका पर्यवसान ? ......... उसके बाद लोकोपकार प्रवृत्ति ? . . . ... ........लोकोपकारप्रवृत्तिका नियम । . वर्तमानमें (अभी) किस तरह प्रवृत्ति करना उचित है ? ... ५५ संस्मरण-पोवो १, पृष्ठ ११७] . आत्मपरिणामकी विशेष स्थिरता होनेके लिये वाणी और कायाका संयम उपयोगपूर्वक करना योग्य है। . . . . . ..
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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