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________________ ६४४ श्रीमद राजचन्द्र वे आपका समागम त्वरासे चाहते है । उनका चातुर्मास भी निवृत्तिवाले क्षेत्रमे हो ऐसा करनेका विज्ञापन है । ८६९ मोरबी, चैत्र वदी ९, गुरु, १९५५ ॐ नम पत्र और समाचारपत्र मिले । 'आचारागसूत्र' के एक वाक्य सबधी चर्चा-पत्रादि देखा है | बहुत करके थोडे दिनोमे किसी सुज्ञ पुरुषके द्वारा उसका समाधान प्रगट होगा । तीनेक दिनसे यहाँ स्थिति है । आत्महित अति दुर्लभ है ऐसा समझकर विचारवान पुरुष अप्रमत्त भावसे उसकी उपासना करते हैं। आपके समीपवासी सभी आत्मार्थी जनोको यथाविनय प्राप्त हो । a मोरबी, वैशाख सुदी ६, सोम, १९५५ 0617 आत्मार्थी मुनिवर अभी वहाँ स्थित होगे । उनसे सविनय निम्नलिखित निवेदन करे । ध्यान, श्रुतके अनुकूल क्षेत्रमे चातुर्माम करनेसे भगवानकी आज्ञाका सरक्षण होगा । स्तभितीर्थमे यदि वह अनुकूलता रह सकती हो तो उस क्षेत्र मे चातुर्मास करनेसे आज्ञाका सरक्षण है । जिस सत्श्रुतकी मुनि श्री देवकीर्ण आदिने जिज्ञासा प्रदर्शित की वह सत्श्रुत लगभग एक मासमे प्राप्त होना योग्य है । यदि स्तभतीर्थमे स्थिति न हो तो किसी अन्य निवृत्तिक्षेत्रमे समागमका योग हो सकता है । स्तभतीर्थंके चातुर्माससे वह होना अभी अशक्य है । जहाँ तक बने वहाँ तक किसी अन्य निवृत्तिक्षेत्रकी वृत्ति रखें । कदाचित् मुनियोको दो विभागोमे बट जाना पड़े तो वैसा करनेमे भी आत्मार्थदृष्टिसे अनुकूल रहेगा । हमने सहज मात्र लिखा है । आप सबको द्रव्यक्षेत्रादि देखकर जैसे अनुकूल श्रेयस्कर लगे वैसे प्रवृत्ति करनेका अधिकार है । - 1 इस प्रकार सुविनय नमस्कारपूर्वक निवेदन करें। वैशाख सुदी पूर्णिमा तक बहुत करके इन क्षेत्रोकी तरफ स्थिति होगी । ॐ ८७१ ॐ मोरबी, वैशाख सुदी ७, १९५५ यदि किसी निवृत्तिवाले अन्य क्षेत्रमे वर्षा चातुर्मासका योग बने तो वैसे करना योग्य है । अथवा स्तंभतीर्थमे चातुर्माससे अनुकूलता रहे ऐसा मालूम हो तो वैसा करना योग्य है । 1 ध्यान और श्रुतके उपकारक साधनवाले चाहे जिस क्षेत्रमे चातुर्मास की स्थिति होने से आज्ञाका अतिक्रम नही है, ऐसा मुनि श्री देवकीर्ण आदिको सविनय विदित करें । इस तरफ एक सप्ताहपर्यंत स्थितिका सम्भव है । आज बहुत करके श्री ववाणिया जाना होगा । एक सप्ताह तक स्थिति संभव है । जिस सत्श्रुतकी जिज्ञासा है, वह सत्श्रुत थोडे दिनोमे प्राप्त होना संभव है, ऐसा मुनिश्री से निवेदन करें । वीतराग सन्मार्ग की उपासनामे वीर्यको उत्साहयुक्त करें ।
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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