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________________ ५७८ श्रीमद् राजचन्द्र ७४५ ___ववाणिया, फागुन सुदी २, १९५३ एकांत निश्चयनयसे मति आदि चार ज्ञान, संपूर्ण शुद्ध ज्ञानको अपेक्षासे विकल्प ज्ञान कहे जा सकते है, परतु सपूर्ण शुद्ध ज्ञान अर्थात् सम्पूर्ण निर्विकल्प ज्ञान उत्पन्न होनेके ये ज्ञान साधन है। उसमे भो श्रुतज्ञान मुख्य साधन है। केवलज्ञान उत्पन्न होने में अत तक उस ज्ञानका अवलबन है ।, यदि कोई जीव पहलेसे इसका त्याग कर दे तो केवलज्ञानको प्राप्त नहीं होता । केवलज्ञान तककी दशा प्राप्त करने का हेतु श्रुतज्ञानसे होता है। ७४६ ववाणिया, फागुन सुदी २, १९५३ त्याग विराग न चित्तमा, थाय न तेने ज्ञान। अटके त्याग विरागमां, तो भूले निज भान ॥ जहां कल्पना जल्पना, तहां मानु दुःख छांई। मिटे कल्पना जल्पना, तब वस्तु तिन पाई ॥ 'पढी पार कहाँ. पावनो, मिटे न मनको चार। ज्यो कोलुके बैलकु', घर हो कोश हजार ॥' 'मोहनीय'का स्वरूप इस जीवको वारवार अत्यत विचार करने योग्य है। मोहिनीने महान मुनोश्वरोको भी पलभरमे अपने पाशमे फंसाकर ऋद्धि-सिद्धिसे अत्यत विमुक्त कर दिया है, शाश्वत सुखको छीनकर उन्हे क्षणभंगुरतामे ललचाकर भटकाया है। निर्विकल्प स्थिति लाना, आत्मस्वभावमे रमण करना और मात्र द्रष्टाभावसे रहना ऐसा ज्ञानियोका जगह जगह वोध है, इस बोधके यथार्थ प्राप्त होनेपर इस जीवका कल्याण होता है।' ' जिज्ञासामे रहे यह योग्य है। कर्म मोहनीय भेद बे, दर्शन चारित्र नाम । । । हणे बोध वीतरागता, अचूक उपाय आम ॥ ॐ शातिः . ७४७ ववाणिया, फागुन सुदी २, शुक्र, १९५३ सर्व मुनियोको नमस्कार प्राप्त हो । मुनि श्री देवकरणजी 'दीनता' के वीस दोहे कण्ठस्थ करना चाहते है, इसमे आज्ञाका अतिक्रम नही है। अर्थात् वे दोहे कण्ठस्थ करने योग्य है। कर्म अनत प्रकारना, तेमां मुख्ये आठ। तेमा मुस्ये मोहनीय, हणाय ते कहुं पाठ॥ कर्म मोहनीय भेद वे, दर्शन चारित्र नाम। हणे बोध वीतरागता, उपाय अचूक आम ॥ -श्री 'आत्मसिद्धिशास्त्र' - ७४८ ववाणिया, फागुन सुदी ४, रवि, १९५३ जहाँ उपाय नही वहाँ खेद करना योग्य नही है । उन्हे शिक्षा अर्थात् उपदेश देकर सुधार करनेका वद रखकर, मिलते रहकर काम निवाहना ही योग्य है। १ अर्थ के लिये देखें 'आत्मसिद्धि' का पद्य । - २ अर्थके लिये देखे 'आत्मसिद्धि' का पद्य १०३ ।
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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