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PLANETYSTI
श्रीमद राजचन्द्र
उ०- ईसाईधर्मके विपयमे मै साधारणरूपसे जानता हूँ । भरतखडमे महात्माओने जैसा धर्म शोधा , विचारा है, वैसा धर्म किसी दूसरे देशसे विचारा नही गया है, यह तो अल्प अभ्याससे भी ममझा जा कता है । उसमे (ईसाई धर्ममे ) जीव की सदा परवशता कही गयी है, और मोक्षमे भी वह दशा वैसी ही रखी है। जिसमे जीवके अनादि स्वरूपका विवेचन यथायोग्य नही है, कर्मसम्बन्धी व्यवस्था और उसकी नवृत्ति भी यथायोग्य नही कही है, उस धर्मके विपयमे मेरा ऐसा अभिप्राय होना सम्भव नही है कि वह सर्वोत्तम धर्म है । ईसाईधर्म में जो मैने ऊपर कहा उस प्रकारका यथायोग्य समाधान दिखायी नही देता । वाक्य मतभेदवशात् नही कहा है। अधिक पूछने योग्य लगे तो पूछियेगा, तो विशेष समाधान किया जा सकेगा ।
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१४. प्र० – वे ऐसा कहते है कि वाईविल ईश्वरप्रेरित है, ईसा ईश्वरका अवतार है, उसका पुत्र है, और था ।
उ०~~यह बात तो श्रद्धासे मानी जा सकती है, परन्तु प्रमाणसे सिद्ध नही है । जैसा गीता और वेद के ईश्वरप्रेरित होनेके बारेमे ऊपर लिखा है, वैसा ही बाईविलके सम्बन्धमे भी मानना । जो जन्ममरणसे मुक्त हुआ वह ईश्वर अवतार ले, यह सभव नही है, क्योकि रागद्वेषादि परिणाम ही जन्मका हेतु है, वह जिसे नही है ऐसा ईश्वर अवतार धारण करे, यह बात विचार करनेसे यथार्थं प्रतीत नही होती । 'ईश्वरका पुत्र है, और था,' इस बातका भी किसी रूपकके तौरपर विचार करे तो कदाचित् मेल बैठे, नही तो प्रत्यक्ष प्रमाणसे वाधित है। मुक्त ऐसे ईश्वरको पुत्र हो, यह किस तरह कहा जाये ? और कहे तो उसकी उत्पत्ति किस तरह कह सकते हैं ? दोनोको अनादि मानें तो पिता-पुत्र सम्बन्ध किस तरह मेल खाये ? इत्यादि बातें विचारणीय हैं। जिनका विचार करनेसे मुझे ऐसा लगता है, कि यह बात यथायोग्य नही है । १५. प्र०
- पुराने करारमे जो भविष्य कहा गया है वह सव ईसाके विपयमे सच सिद्ध हुआ है । उ०- ऐसा हो तो भी उससे उन दोनो शास्त्रोके विषयमे विचार करना योग्य है। तथा ऐसा भविष्य भी ईसाको ईश्वरावतार कहनेमे वलवान प्रमाण नही है, क्योकि ज्योतिषादिकसे भी महात्माकी उत्पत्ति बतायी हो ऐसा सम्भव है । अथवा भले किसी ज्ञानसे वैसी वात बतायी हो, परतु वैसे भविष्यवेत्ता सम्पूर्ण मोक्षमार्ग के ज्ञाता थे, यह बात जब तक यथास्थित प्रमाणरूप न हो, तब तक वह भविष्य इत्यादि एक श्रद्धाग्ग्राह्य प्रमाण है, और वह अन्य प्रमाणोसे वाधित न हो, ऐसा धारणामे नही
आ सकता ।
१६ प्र० - इसमे 'ईसामसीह के चमत्कार' के विषयमे लिखा है ।
उ०--जो जीव कायामेसे सर्वथा चला गया हो, उसी जीवको यदि उसी कायामे दाखिल किया हो, अथवा किसी दूसरे जीवको उसमे दाखिल किया हो, तो यह हो सकना संभव नही हैं; और यदि ऐसा हो तो फिर कर्मादिकी व्यवस्था भी निष्फल हो जाये । बाकी योगादिकी सिद्धिसे कितने ही चमत्कार उत्पन्न होते हैं, और वैसे कुछ चमत्कार ईसाके हो, तो यह एकदम मिथ्या है या असम्भव है, ऐसा नही कहा जा सकता, वैसी सिद्धियाँ आत्माके ऐश्वर्यके आगे अल्प हैं, आत्माका ऐश्वर्य उससे अनंतगुना महान सभव है । इस विषय समागममे पूछना योग्य है ।
१७ प्र०- ० - भविष्य मे कौनसा जन्म होगा उसका इस भवमे पता चलता है ? अथवा पहले क्या थे इसका पता चल सकता है ?
उ०- यह हो सकता है । जिसका ज्ञान निर्मल इत्यादि चिह्नोसे वरसातका अनुमान होता है, वैसे इस
हुआ हो उसे वैसा होना संभव है । जैसे बादल जीवकी इस भवकी चेष्टासे उसके पूर्वकारण कैसे