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आर
३८७ |
३९९
निर्भयता और खेदशून्यताका सेवन करनेकी ४७९ वाणीका सयम श्रेयरूप, जीवकी मूढताके शिक्षा, सद्विचार और आत्मज्ञान आत्म
विचारमें सावधानी
३९५ गतिके कारण हैं
३८५ ४८० मुमुक्षु जीवको परिधम देना अपराध ३९६ ४६१ आत्मज्ञान वेदक होनेसे उद्विग्न नही करता, | ४८१ मुमुक्षुको परिश्रम देनेमें खेद. ३९६
आत्मवार्ताका वियोग उद्विग्न करता है, ४८२ चित्तका सोप भाव, अप्रमत्तदशामें चिन्तामें समता ३८६ | | सम्पर्णज्ञान
३९६ ४६२ दुर्लभ माणिकका वो अद्भुत माहात्म्य, ४८३ विचारभूमिकामें विचारणीय, कविताका और दुर्लभ सत्संगमें अरुचि यह आश्चर्य
आराधन आत्मकल्याणके लिये ३९७ विचारणीय
३८६ । ४८४ उपाधि प्रसगमें गुणकी विशेष स्पष्टता ३९७ ४६३ मेरु आदि सम्बन्धी, उदासी एकदम गुप्त ४८५ ससार-स्वरूपका वेदन मोक्षोपयोगी ३९७ जैसी, आत्मा समाधिप्रत्ययी
३८७ ४८६ ज्ञानी और अज्ञानीका स्वरूप, सर्व धर्मोका ४६४ गुजरातके किसी निवृत्तिक्षेत्रका विचार
आधार शान्ति
३९८ सम्भव
४८७ प्रारब्ध-कर्मको निवृत्ति, प्रारब्ध स्थितिमे ४६५ प्राणघातक उपाधियोग, अखड आत्मधुन
जड मौनदशा
३९८ पूर्वक भक्तिको आतुरता निकी मातरता ४८८ सुदर्शन सेठ
३९९ ४६६ आत्मतामार्गरूप धर्म, प्रत्यक्ष ज्ञानी मीठे ४८९ 'शिक्षापत्र'मे भक्तिका प्रयोजन , पानीका कलश, ज्ञानी पुरुषने कुछ कहना ४९० उपाधि दूर करनेके लिये दो पुरुषार्थ, बाकी नही रखा है, जीवने करना बाकी
आकुलतासे मार्गका विरोध
३९९ रखा है
३८८ ४९१ तीर्थकरका उपदेश, दुःख-मुक्तिके लिये ४६७ ज्ञानीपुरुषमें विभ्रमबुद्धि अथवा विकल्प
आत्म-गवेषणा, सत्सगकी भक्ति और बुद्धि, ज्ञानी-अज्ञानीकी दशाकी विलक्षणता ३८९ सर्वोत्तम अपूर्वता ४६८ सच्ची ज्ञानदशा होनेपर दु.खमें अविषमता ३९० । ४९२ ससारको प्रतिकूलदशा उपकारक ४०० ४६९ सर्व आत्माओंके प्रति समदृष्टि, सर्व ४९३ छ पद सम्यग्दर्शनके निवासके सर्वोत्कृष्ट पदार्थोके प्रति उदासीनता, सबसे अभिन्न
स्थानक
४०१ भावना, अविकल्परूप स्थिति
३९०
४९४ दो प्रकारके पूर्वकर्म और उनकी निवृत्ति ४०३ ४७० कल्याणका महान निश्चय, मुमुक्षु भाई. ४९५ ससारमें अधिक व्यवसाय न करना, सत्सग बहनका परस्पर व्यवहार
३९१
करना, विशेष अपराधीकी भांति आत्मामें ४७१ सुधारस बोजज्ञान-स्वरूप कब?
सलग्न रहेंगे
४०४ ४७२ सुधारससम्बन्धी, सहजस्वभावसे परमार्थरूप
४९६ गृहस्थको अखड नीतिके मलके बिना ३९२ उपदेशादि निष्फल
४०४ ४७३ व्याकुलता धीरजसे सहन करने योग्य ३९३ ४९७ उपदेशकी आकाक्षा
४०५ ४७४ आत्मभावना भाते-भाते केवलज्ञान ३९४
४९८ मुमुक्षुताका मुख्य लक्षण
४०५ ४७५ सुधारसका माहात्म्य
४९९ व्यवसायके सक्षपसे वोधका फलित होना ४०५ ४७६ मनुष्य प्रयत्न और प्रारब्ध
३९४ / ५०० वैराग्य-उपशमका वल, सब भूलोकी बीज२७ या वर्ष
भूत भूल, उपदेशज्ञान और सिद्धातजान ४०६ ४७७ शालिभद्र और घनाभद्रका वैराग्य, कालका | ५०१ साधुका पत्र-समाचार मात्र आत्मार्थके विश्वास
३९५ लिये, जिनेन्द्रकी आज्ञाएं-आत्मकल्याणके ४७८ बाह्य चित्तकी अव्यवस्था
३९५ लिये पाँच महाव्रत आदि और अपवाद ४०७
४००
प्रवर्तन
३९४