SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 326
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३ वो वर्ष २४३ पन्ना १९ उस परमात्माके अनुग्रहसे पुरुष वैराग्य विवेक आदि साधनसंपन्न होता है। पन्ना २० इन साधनोसे युक्त ऐसा योग्य पुरुष सद्गुरुकी आज्ञाको समुत्थित करने योग्य है । पन्ना २१-२२ ये साधन जीवकी परमं योग्यता और यही परमात्माकी प्राप्तिका सर्वोत्तम उपाय हैं । पन्ना २३ सभी कुछ हरिरूप ही है । इसमे, फ़िर भेद कैसा? . .. भेद है ही नहीं। सर्व आनन्दरूप ही है। ब्राह्मी स्थिति । स्थापितो ब्रह्मवादो हि, सर्व वेदातगोचरः। पन्ना २४ यह सब ब्रह्मरूप ही है, ब्रह्म ही है। ऐसा हमारा दृढ निश्चय है। - -. . इसमे कोई भेद नही है, जो है वह सर्व ब्रह्म ही है। सर्वत्र ब्रह्म है, सर्वरूप ब्रह्म है । उसके सिवाय कुछ नही है। जीव ब्रह्म है, जड ब्रह्म है । हरि ब्रह्म है, हर ब्रह्म है। ब्रह्मा ब्रह्म है । ॐ ब्रह्म है । वाणी ब्रह्म है । गुण ब्रह्म है। 7 सत्त्व ब्रह्म है । रजो ब्रह्म है । तमो ब्रह्म है । पंचभूत ब्रह्म है। . 'आकांश ब्रह्म है। वायु ब्रह्म है । अग्निः ब्रह्म है। जल भी ब्रह्म है। , पृथ्वी भी ब्रह्म है । देव ब्रह्म है। मनुष्य ब्रह्म है। तिर्यच ब्रह्म है। नरक ब्रह्म है। सर्व ब्रह्म है। अन्य नही है।. . . पन्ना २५ काल ब्रह्म है । कर्म ब्रह्म है । स्वभाव ब्रह्म है । नियति ब्रह्म है। ज्ञान ब्रह्म है । ध्यान ब्रह्म है। जप ब्रह्म है । तप ब्रह्म है । सर्व ब्रह्म है। नाम ब्रह्म है । रूप ब्रह्म है । शब्द ब्रह्म है । स्पर्श ब्रह्म है। रस ब्रह्म है। गध ब्रह्म है । सर्व ब्रह्म है। - - ऊँचे नीचे तिरछे सर्व ब्रह्म है। एक ब्रह्म है । अनेक ब्रह्म हैं। ब्रह्म एक है, अनेक भासित होता है। सर्व ब्रह्म है। सर्व ब्रह्म है। सर्व ब्रह्म है। ॐ शाति शातिः शातिः। सर्व ब्रह्म है, इसमे सशय नही । मै ब्रह्म, तू ब्रह्म, वह ब्रह्म इसमे सशय नही। पन्ना २६
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy