SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०वा वर्ष १४१ १०४. उपदेशकको द्वेषसे नही देखू । १०५. द्वेषमात्रका त्याग करूँ। १०६ रागदृष्टिसे एक भी वस्तुका आराधन नही करूं। १०७. वैरीके सत्य वचनका मान करू। १०८. १०९. ११०. १११. ११२. ११३ ११४. ११५. ११६ बाल नही रखू । (गृ०) ११७ कचरा नही रखू । ११८. कीचड नही करूँ-आँगनके पास । ११९. मुहल्लेमे अस्वच्छता नही रखू। (साधु) १२० फटे कपडे नही रखें। १२१. अनछना पानी नही पीऊँ। १२२. पापी जलसे नही नहाऊँ । १२३. अधिक जल नही गिराऊ । १२४ वनस्पतिको दुख नही हूँ। १२५ अस्वच्छता नही रखू । १२६ प्रहरका पकाया हुआ भोजन नही करूँ। १२७. रसेंद्रियकी वृद्धि नही करूं । १२८. रोगके बिना औषधका सेवन नही करू। १२९ विषयका औषध नही खाऊँ । १३०. मिथ्या उदारता नही करूं। १३१. कृपण नही होऊँ। १३२. आजीविकाके सिवाय किसीमे माया नहीं करूं। १३३ आजीविकाके लिये धर्मका उपदेश नही करूँ। १३४ समयका अनुपयोग नही करूं। १३५. विना नियम कार्य नहीं करूं। १३६. प्रतिज्ञा-व्रत नही तोडूं। १३७. सत्य वस्तुका खडन नही करूँ। १३८. तत्त्वज्ञानमे शकित नही होऊँ। १३९ तत्त्वका आराधन करते हुए लोकनिंदासे नही डरूँ। १४०. तत्त्व देते हुये माया नही करूं । १४१. स्वार्थको धर्म नही कहूँ।
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy