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१७ वॉ वर्ष
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अहो ! राजचन्द्र, बाळ ख्याल नथी पामता ए, जिनेश्वर तणी वाणी जाणी तेणे जाणी छे ॥१॥
शिक्षापाठ १०८ : पूर्णमालिका मंगल
(उपजाति) *तपोपध्याने रविरूप थाय, ए साघीने सोम रही सुहाय; महान ते मंगळ पंक्ति पामे, आवे पछी ते बुधना प्रणामे ॥१॥ निर्गन्य ज्ञाता गुरु सिद्धिदाता, कां तो स्वयं शुक्र प्रपूर्ण ख्याता; त्रियोग त्यां केवळ मंद पामे, स्वरूप सिद्धे विचरी विरामे ॥२॥
अपनी मतिका माप निकल जाता है, ऐसा मैंने माना है। राजचन्द्र कहते हैं कि यह कितना आश्चर्य है कि अज्ञानी जीवोको जिनवाणीका ख्याल भी नही आता अर्थात् वे उसकी महिमाको नही जानते हैं। जिनेश्वरकी वाणीको जिसने जाना है उसीने जाना है ॥१॥
*भावार्य-आत्मा तप और ध्यानसे सूर्यकी भांति तेजस्वी होता है। तप और ध्यानकी सिद्धिसे शान्त तथा शीतल होकर आत्मा चद्रकी तरह शोभता है। फिर महामगलकी महापदवीको प्राप्त होता है। फिर वह बुधके परिणाममें आता है अर्थात् बोधिस्वरूप हो जाता है ।। १ ।।
फिर वह सिद्धिदाता एव ज्ञाता निर्ग्रन्थ गुरु अथवा पूर्ण व्याख्याता स्वय शुक्रका स्थान ग्रहण करता है। उस दशामें त्रियोग सर्वथा मद हो जाते हैं। परिणामत आत्मा स्वरूप सिद्ध होनेपर ऊर्ध्वगमन करके सिद्धालयमें विराजता है ॥२॥