________________
१७ वा वर्ष
५३ प्रिय पुत्र | जैसे लोहेके चने चबाना दुष्कर है वैसे ही संयमका आचरण करना दुष्कर है। जैसे अग्निकी शिखाको पीना दुष्कर है, वैसे ही यौवनमे यतित्व अगीकार करना महादुष्कर है। सर्वथा मद सहननके धनी कायर पुरुषके लिये यतित्व प्राप्त करना तथा पालना दुष्कर है । जैसे तराजूसे मेरु पर्वतका तौलना दुष्कर है वैसे ही निश्चलतासे, नि शकतासे दशविध यतिधर्मका पालन करना दुष्कर है। जैसे भुजाओसे स्वयभूरमणसमुद्रको पार करना दुष्कर है वैसे ही उपशमहीन मनुष्यके लिये उपशमरूपी समुद्रको पार करना दुष्कर है।
हे पुत्र | शब्द, रूप, गध, रस और स्पर्श इन पाँच प्रकारसे मनुष्यसबधो भोगोको भोगकर भुक्तभोगी होकर तू वृद्धावस्थामे धर्मका आचरण करना।"
मातापिताका भोगसबधी उपदेश सुनकर वे मृगापुत्र मातापितासे इस तरह बोल उठे
"जिसे विषयकी वृत्ति न हो उसे संयम पालना कुछ भी दुष्कर नही है। इस आत्माने शारीरिक एव मानसिक वेदना असातारूपसे अनत बार सहन की है, भोगी है। महादु.खसे भरी, भयको उत्पन्न करनेवाली अति रौद्र वेदनाएँ इस आत्माने भोगी है। जन्म, जरा, मरण-ये भयके धाम हैं । चतुर्गतिरूप ससाराटवीमे भटकते हुए अति रौद्र दुःख मैने भोगे हैं । हे गुरुजनो । मनुष्यलोकमे जो अग्नि अतिशय उष्ण मानी गयो है, उस अग्निसे अनत गुनी उष्ण तापवेदना नरकमे इस आत्माने भोगो है। मनुष्यलोकमे जो ठंड अति शीतल मानी गयी है उस ठडसे अनत गुनी ठड नरकमे इस आत्माने असातासे भोगी है । लोहमय भाजनमे ऊपर पैर बाँधकर और नीचे मस्तक करके देवतासे वैक्रिय की हुई धाय धायँ जलती हुई अग्निमे आक्रदन करते हुए इस आत्माने अत्युन दु ख भोगे है। महा दवकी अग्नि जैसे मरुदेशमे जैसी बालू है उस बालू जैसी वज्रमय बालू कदब नामक नदीको बालू हैं, उस सरीखी उष्ण बालूमे पूर्वकालमे मेरे इस आत्माको अनत बार जलाया है ।
___ आक्रदन करते हुए मुझे पकानेके लिये पकानेके बरतनमे अनत बार डाला है। नरकमे महारौद्र परमाधामियोने मुझे मेरे कडवे विपाकके लिये अनत बार ऊंचे वृक्षकी शाखासे बांधा था। बान्धवरहित मुझे लम्बी करवतसे चीरा था । अति तीक्ष्ण कॉटोसे व्याप्त ऊँचे शाल्मलि वृक्षसे बाँधकर मुझे महाखेद दिया था । पाशमे बाँधकर आगे-पीछे खीचकर मुझे अति दुखी किया था। अत्यन्त असह्य कोल्हूमे ईखकी भांति आक्रदन करता हुआ मै अति रौद्रतासे पेला गया था। यह सब जो भोगना पडा वह मात्र मेरे अशुभ कर्मके अनत बारके उदयसे ही था । साम नामके परमाधामीने मुझे कुत्ता बनाया, शबल नामके परमाधामीने उस कुत्तेके रूपमे मुझे जमीन पर पटका, जीर्ण वस्त्रको भॉति फाडा, वृक्षकी भाँति छेदा, उस समय मैं अतीव तड़फडाता था।
विकराल खड़गसे, भालेसे तथा अन्य शस्त्रोंसे उन प्रचडोने मुझे विखडित किया था। नरकमे पाप कर्मसे जन्म लेकर विषम जातिके खंडोका दु ख भोगनेमे कमी नही रही। परतत्रतासे अनंत प्रज्वलित रथ मे रोझकी भाँति बरबस मुझे जोता था। महिषकी भांति देवताकी वैक्रिय की हुई अग्निमे मै जला था। मैं भुरता होकर असातासे अत्युन वेदना भोगता था । ढक-गीध नामके विकराल पक्षियोकी सँडसे जैसी चोचोंसे चूंथा जाकर अनत बिलबिलाहटसे कायर होकर मै विलाप करता था। तृपाके कारण जलपानके चिन्तनसे वेगमे दौडते हुए, वैतरणीका छरपलाकी धार जैसा अनत दुखद पानी मुझे प्राप्त हुआ था। जिसके पत्ते खड़गकी तीव्र धार जैसे हैं, जो महातापसे तप रहा है, वह असिपत्रवन मुझे प्राप्त हुआ था, वहाँ पूर्वकालमे मुझे अनन्त बार छेदा गया था । मुद्गरसे, तीव्र शस्त्रसे, त्रिशूलसे, मूसलसे तथा गदासे मेरे शरीरके टुकड़े किये गये थे । शरणरूप सुखके बिना मैने अशरणरूप अनन्त दुख पाया था। वस्त्रकी भॉति मझे छरपलाकी तीक्ष्ण धारसे, छुरीसे और कैचीसे काटा गया था। मेरे खड खड टुकड़े किये गये थे। मझे