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________________ [ ११ ] ३ श्री परमश्रुत प्रभावक मडलके द्वितीय संस्करणमे तीनो सस्मरण-पोथियोके लेख-लेख परसे मितीका अनुमान करके संवधित वर्षके अन्तर्गत मुद्रित किये गये है। इस संस्करणमे वैसा नही किया परन्तु प्रथम सस्करणके अनुसार तीनो सस्मरण-पोथियाँ, एक,साथ दी है। ४ पूर्व सस्करणोमे कई स्थलो पर एक हो लेखके भागकर भिन्न-भिन्न आकके अतर्गत दिये गये हैं तथा कई लेख अलग होने पर भी एक आकके अंतर्गत दिये गये हैं, परन्तु इस सस्करणमे , मूल आधारका अनुसरण करके एक लेख; एक ही आकके अतर्गत दिया गया है। ५ मूल लेखमे आनेवाले व्यक्तियोके नाम प्रायः रहने दिये हैं। : - ६ ,मूल स्थिति हो लेख प्रकाशित हो ऐसा लक्ष्य रखा गया है। - अत पूर्व सस्करणोके लेखका अपेक्षा इसमे कई स्थलो पर , न्यूनाधिक लगेगा परन्तु वह शुद्धि-वृद्धि मूलके आधार पर ही की गई है। ७ पूर्वापर सम्बन्ध बना रहे यह ध्यानमे रखकर व्यक्तिगत और व्यावहारिक लेख पत्रमेसे निकाल __ दिये गये है और इसे सूचित करनेके लिये कोई चिह्न भी नही रखा है। फिर भी सामान्यत • उपकारक ऐसा व्यक्तिगत लेख ले लिया गया है। ८ पाठक स्वतत्रतासे और सुगमतासे पढ-विचार कर अपना निर्णय कर सके इस हेतुसे किसी वाक्य या शब्दके नीचे न तो लोटी खीची है और न ही उसे बडे अक्षरोमे लिया है । परन्तु मूल लेखके अनुसार ही मुद्रित किया है। खास आवश्यकताके बिना या हकीकत विदित करनेके सिवाय पादटिप्पण भी नही दिया है । क्रमबद्ध एक सरीखे अक्षरोमे पूरा वचनामृत मुद्रित किया है। ९ स्वतत्र रीतिसे नये अनुक्रमाक दिये है। १० श्री परमश्रुत प्रभावक मडलके "द्वितीय सस्करणके आक दायी ओर [ ] ऐसे कोष्ठकमे दिये गये है । जहाँ ऐसा आक नही है उसे अप्रगट साहित्य समझें। ११ सामान्यतया श्री परमश्रुत प्रभावक मडलके द्वितीय सस्करणके क्रमका अनुसरण कर, लेख वयक्रममे रखे हैं । जहाँ मितीमे प्रमाणभूत भूल लगी, वह लेख नयी मितीके अनुसार अन्यत्र रखा है। १२ प्रत्येक लेखके ऊपर प्राप्त मिती दी गई है। १३ विस्तृत अनुक्रमणिका तथा परिशिष्ट देकर, हो सका उतना ग्रन्थका अभ्यास सुगम करनेका प्रयास किया है। परिशिष्टोमे-इस ग्रन्थमे आनेवाले अन्य ग्रन्थोंके उद्धरण और उनके मूल स्थान, पत्रो सम्बन्धी विशेष जानकारी, पारिभाषिक और कठिन शब्दोके अर्थ, ग्रन्थनाम, स्थल, विशेषनाम तथा विषयसूची भो दिये गये हैं । इस तरहके विवरणसे ग्रन्थ समझनेमे सुगमता होगी। अवधान-समयके काव्य, स्त्रीनीतिबोधक, अन्य पत्रिकाओमे प्रकाशित करत त्याँकिमोल वर्षको आयुके पहलेके काव्य आदि 'सुबोध सग्रह' ग्रन्थरूपसे अलग प्रकाशित करने की भावनासे इस नही दिये हैं। क्रमाक 1.3.8.78.. ____ अवधान सम्बन्धी लिखित एक पत्र (आक १८) इस ग्रन्थमे दिया है। * ये आक प्रस्तुत सस्करणमेंसे निकाल दिये गये है।
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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