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________________ श्रीमद् राजचन्द्र छत्रप्रबंधस्य प्रेमप्रार्थना जेतपुर, कार्तिक सुदी १५,१९४१ आ KINNI NANA काभ आ7 नान आआ TAL - A सि ANANENu RANAUN / मोमोमो मोमोमो दादाटा टाटा ससस पा NUMANI 3NANA का। 16 Na पी ताताला दादादा AYAVAVAYA. AVEVO 1451 AMAATAKAM १ २ अन्तर्गत-भुजगी छन्द अरिहंत आनंदकारी अपारी, सदा मोक्षदाता तथा दिव्यकारी; विनंति वणिके विवेके विचारी, वडी वंदना साथ हे ! दुःखहारी॥ कर्ता उपजाति ववाणियावासी वणिक रचेल तेणे शुभ हित सुबोध दाख्यो रवजी आ रायचदे मनथी ज्ञाति, कांति; तनुजे, रमूजे ॥ दना न तिव|णि के प्रयोजन प्रमाणिका वणिक जेतपुरना, रिझाववा कसूर ना; रच्यो प्रबंध चित्तथी, चतुरभुज हितथी॥ . डा इस प्रबंधमे दृष्टिदोष, हस्तदोष या मनोदोष दृष्टिगोचर हो तो उनके लिये क्षमा चाहते हुए विनयपूर्वक वंदना करता हूँ। मै हूँ, " रायचंद्र रवजी १ अरिहत सदा आनद देनेवाले अपार गुणवाले, मोसके देनेवाले, दिव्यकर्म करनेवाले हैं । हे दु खहारी । यह वणिक् विवेकपूर्वक विचार करके वदनाके साथ आपसे विनती करता है। २ जो ववाणियावासी और वणिक जातिका है उसने शभ, हित और कातिके लिये यह रचना की है। श्री रवजीभाईके पुत्र इस रायचदने मनसे विनोदमें यह सुवोध दिया है। ३ जेतपुरके वणिक निर्दोप चतुर्भुजको प्रसन्नता तथा हितके लिये चित्तकी उमगसे यह प्रवध रचा है।
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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