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श्रीमद् राजचन्द्र
नास्तिक-आत्मा आदि पदार्थोको नहीं माननेवाला। पद्मवन-कमलवन । निकाचित कर्म-जिन कर्मोंमे मक्रमण, उदीरणा, पद्मासन-एक प्रकारका आसन ।
उत्कर्षण, अपकर्षण आदि द्वारा परिवर्तन न हो, परधर्म- अन्य मत । पुद्गलादि द्रव्योका धर्म आत्माके
किन्तु निश्चित समयपर ही उदयमे आकर फल दें। लिये परधर्म है। निगोद-एक शरीरमें अनत जीव हो ऐसी अनतकाय। परभाव-परद्रव्यका भाव । निज छंद-अपनी इच्छानुसार चलना।
परमधाम-उत्तम स्थान, अतिशय तेज । निदान-धर्मकार्यके फलमें आगामी भवमें सासारिक परमपद-मोक्ष; शुद्ध आत्मस्वभाव । सुखकी अभिलाषा करना, कारण ।
परम सत्-आत्मा, परमज्ञान, सर्वात्मा । आक २०९ निदिध्यासन-अखड चिन्तन ।
परम सत्सग-अपनेसे ऊंची दशावाले महात्माओका निबधन-वधन, बाँधा हुआ।
समागम । नियति-नियम, भाग्य, होनी, जो अवश्य होकर रहे। परमाणु-पुद्गलका छोटेसे छोटा भाग । निरंजन-कर्म-कालिमारहित ।
परमार्थ सम्यक्त्व-जिस पदार्थको तीर्थकरने 'आत्मा' निरुपक्रम आयुष्य-जो आयु वीचमें टूटे नही, निका- कहा है, उसी पदार्थकी उसी स्वरूपसे प्रतीति हो __चित आयु ।
उसी परिणामसे आत्मा साक्षात् भासित हो। निर्गन्य-साधु, जिसकी मोहकी गांठ टूटी है।
(आक ४३१) निग्रंन्थिनीसाध्वी।
परमार्थ सयम-निश्चयसयम, स्वस्वरूपमें स्थिति । निर्जरा-आत्मासे कर्मोका आशिकरूपमे क्षय होना।
(आक ६६४) नियुक्ति-शब्दके साथ अर्थको जोडनेवाली, टीका ।
परमावगाढ सम्यक्त्व-केवलज्ञानीका सम्यक्त्व परनिर्वाण-आत्माकी शुद्ध अवस्था, मोक्ष ।
मावगाढ सम्यक्त्व है। निर्विकल्प-निराकार दर्शनोपयोग, उपयोगकी स्थिरता, परसमय-अन्य दर्शन, समय अर्थात् आत्मा, उसे भूलविकल्पोका अभाव ।
कर दूसरे पदार्थोंमें वृत्तिका जाना या लीन होना । निविचिकित्सा सम्यग्दर्शनका तीसरा अग, महात्मा- पराभक्ति-उत्तम भक्ति, ज्ञानीपुरुषके सर्व चरित्रम ___ ओके मलिन शरीरको देखकर ग्लानि न करना। ऐक्यभावका लक्ष होनेसे उसके हृदयमे विराजमान निर्वेद-ससारसे वैराग्य होना ।
परमात्माका ऐक्यभाव । (आक २२३) निर्वेदनी कथा-जिस कथामे वैराग्यरसकी प्रधानता हो परिग्रह- वस्तुपर ममता, मूर्छाभाव । निश्चयनय-शुद्ध वस्तुका प्रतिपादन करनेवाला ज्ञान । परिवर्तन-घुमाव, फेरा, हेरफेर, रूपान्तर । निहार-मल-त्याग, शौचक्रिया ।
पर्यटन-परिभ्रमण । निःश्रेयस-मोक्ष, दु खका अभाव ।
पर्याय-पदार्थकी बदलती हुई अवस्था । प्रत्येक वस्तु नेफी-भलाई, उपकार, ईमानदारी ।
पर्यायवाली है, उसमे परिणमन होता ही रहता है। नेपथ्य-पर्देके पीछेका स्थान, अतर ।
पर्यायवद्धता-उमरमे वडाई, दीक्षामें बडा । नैष्ठिक-निष्ठावान, श्रद्धावान, दृढ ।
पर्यायालोचन-एक वस्तुको दूसरी तरहसे विचारना । नौतम-नवीन (नवतम)
पर्युषण-जैनोका एक महान पर्व ।
पल-२४ सैकड प्रमाण समय, ६० विपल । पतग--एक प्रकारका वृक्ष, जिसकी लकडीमेंसे लाल पंथ-सम्प्रदाय, मत, मार्ग । ___ कच्चा रग निकलता है, कागजकी पतग। पंद्रह भेदसे सिद्ध-तीर्थ, अतीर्थ, तीर्थंकर, अतीर्थकर, पतित-पापी, अवोदशावाला।
स्वयवुद्ध, प्रत्येकवुद्ध, बुद्धबोधित, स्त्रीलिंग, पुरुषपवस्थ-ध्यानका एक भेद, जिसमे अरिहतादि पर- लिंग, नपुसकलिंग, अन्यलिंग, जैनलिंग, गृहस्थलिंग, मेष्ठियोका चिन्तन किया जाता है।
एक, अनेक । (व्याख्यानसार २-५)
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