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________________ हर्ष के नाम से प्रचलित तीन रूपक काल तक वह महाबानो की सेविका बनी रही। परन्तु अन्त में मालूम हो गाथा कि वह खट्टा की राजकुमारी है। सच्ची हिन्दू-पत्नी के समान, जो पति के सुख के लिए सदा अपने सुखों की बलि देने को तैयार रहती है, वाहवत्ता ने रजावली का विवाह उदयन के साथ हो जाना स्वीकार कर लिया। इस वस्तु का आधार इतिहास या ऐतिहासिक उपाख्यान है और कुछ बदले हुए रूप में यह कथा कथासरित्सागर में भी आई है। एक ओर रत्नावली माटिका कालिदास के माखधिकाग्निमित्र से और दूसरी ओर राजशेखर की कपूरमजरी से अत्यन्त मिलती जुलती है। प्रियदर्शिका माटिका में उदयन के प्रारपियका (प्रियदर्शिका) के साथ अनुराग-व्यवहार का और अन्त में विवाह बन्धन का वर्णन है। वह अगदेश के राजा इदवर्मा की दुहिता थी और उदयन से उसकी सगाई हुई थी। अभी प्रियदर्शिका का विवाह नहीं हुआ था कि काबिना के राजा ने अङ्ग पर आक्रमण करके दा को बन्दी बना लिया। प्रिय दक्षिका प्राषियका के नाम से उदयन के अन्तःपुर में पहुंच गई । दीर्ष कालक्रम के पश्चात् उसका रहस्य खुल गया और अन्ततो गरवा वह उदयन की परिणीता प्रिया बन गई। नागानन्द में पाँच अङ्क हैं। इसमें जीमूतवाहन के प्रात्मोत्सर्ग की कथा है। इसने सर्प के स्थान पर अपने आपको गरुड़ को खाने के जिए दे दिया था। इसके इस औदार्य कार्य से प्रसन्न होकर गौरीदेवी ने इसे पुनर्जीवित कर दिया, जिससे इसके रोते हुए माता-पिता को १ इस रूपक के अन्दर एक और रूपक है जिसमें विश्वासपात्री सनी सास्कृत्यायनी) की घी बनी हुई है। इस अवान्तर रूपक में (मनोरमावेषधारी) राजा (वासवदत्तारूपधारिणी) श्रारपियका के प्रणय-पाश में बंध जाता है। २ बीभतवाइन की ऐसी ही एक कथा कथासरित्सागर की बारहवीं तरंग में दी गई है।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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