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________________ २५४ सस्कृत साहित्य का इतिहास भुगाल (२,४) चतुर ऋगाल (१,१३), तानुवाच सोमिखक (२,१), कुटिल कुटनी (३.५), महाराज शिधि (३, ७), वृद्धवारल (३,३१), अशुन-चोर (२,१), और बनावटी सिपाही (४,३), इनमें से कुछ कहानियों में लुक लकार का पुनरुक प्रयोग पाया जाता है। इसी से इनका प्रक्षित होना सिद्ध होता है । इस प्रक्ष के काल का निर्णय करना कठिन है। (६७) 'सरल' ग्रन्थ (The Textus Sinxplicior)। इस संस्करण के अन्य का पाठ रूप-रेखा और कार्य-वस्तु दोनों की दृष्टि से बहुत कुछ पश्चिर्तित पाया जाता है। पांचों तन्त्रों का आकार प्रायः एक-जितना कर दिया गया है। असली पञ्चतन्त्र क तीसरे तन्त्र की कई कहानियां इसमें चौधे तन्त्र में रख दो गई हैं, और सभी तन्त्रों में कुछ नई बातें बढ़ा दी गई हैं। तीसरे, चौथे और पांचवें तन्न के ढांचे परिवर्तन कर दिए गए है। उदाहरणार्थ, पाँचवें तन्त्र में मुख्यता नाई की कहानी को प्राप्त है, और इसी में एक दूपरी कथा डाल दी गई है। हम नई कहानियों में से कई वस्तुतः शोधक हैं। पहले तन्त्र की पांचवी कथा में एक जुलाहा विष्णु बन बैठता है । परन्तु अपने आप को दिव्यांश का अवतार मानने वाले एक राजा की मूर्खता से उसकी कलई खुल जाती है । जब इस राजा ने अपने पड़ोसी राजाओं से लड़ाई प्रारम्भ कर दी और स्वयं पराजित होने के समीप ा गया, तब विष्णु को उसके यश की रक्षार्थ अवतार लेना पड़ा। इसी संस्करण का पाठ तन्त्राख्यायिका के पाठ से बहुत मिलता है। इसमें असली पतन्त्र के लगभग एक तिहाई श्लोक पा गए हैं। इस संस्करण में ब्राह्मण, ऋषि-मुनियों के स्थान पर जैन साधुओं के उल्लेख है, तया दिगम्बर, नग्नक, आपणक, धर्म देशना जैसे शब्दों का अधिक प्रयोग पाया जाता है। इससे अनुमान होता है कि इसका
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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