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________________ तन्त्राख्यायिका २५३ सुगम है । इसमें कृदन्त के प्रयोग प्रचुरता से पाए जाते हैं। भूतकाल लिए प्रायः 'क' प्रत्ययान्त अथवा ऐतिहासिक बट वाले पद का प्रयोग किया गया है। कर्तरि प्रयोग की अपेक्षा कर्मणि प्रयोग अधिक हुश्रा है।' कृदन्त अध्ययों और कृदन्त विशेषणों की बहुलता है। तिङन्ता क्रियापदों के स्थान में कृदन्त क्रियापद व्यवहार में खाए (६६) तन्त्राख्यायिका। तन्त्राख्यायिका पञ्चतन्त्र का ही एक विकृत रूप है। इसको केवल एक ही हस्ताङ्कित प्रति काश्मीर से शारदा-लिपि में लिखी मिली है। इसका पता वर्तमान शताब्दी के प्रारम्भ में प्रो. हर्ट ने लगाया था। इसके दो उपरूप मिलते हैं । इटल ने उनके नाम अ (A) और ब (B) रक्खे हैं । इटल के मत से 'अ' अधिक मौलिक है, और ऐजर्टन के मत हटल ने तन्त्राख्याख्यायिका के महत्व पर इद से ज्यादा जोर दिया है । हाँ, इससे इनकार नहीं हो सकता कि किसी और संस्करण की अपेक्षा तन्त्राख्यायिका में मूलांश अधिक है। इसमें मूब से जो जो भेद है वह मुख्यतया वृद्धि भोर विस्तार करने का अधिक है परित्याग और परिवर्तन का कम । इसमें बढ़ाई हुई कुछ कहानियाँ है ---नील स्त्री है, स्वभावतः बोझ बर्दाश्त नहीं कर सकती । अतः उनमें से किसी एक को छोड़ देती है। १ ऐसी शैली का अनुकरण करना सुगम है और इसीलिए विद्यार्थियो को सलाह दी जाती है कि वे ऐसी शैली को अपनाएँ । २ हर्टल का विश्वास है कि तन्त्राख्यायिका ही एक ऐसा संस्करण में मूला पञ्चतन्त्र की भाषा असली रूप में विदयमान है; यदि उसमें कहीं कोई परिवर्तन है भी, तो वह विचार से नहीं किर गया है। परन्तु इस मत के विरुद्ध जाने वाले और भी संस्करण जिनके बारे में भी बिलकुल यही राय प्रकट की जा सकती है।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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