SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रामशूर कृत जातक माला २३३ प्रायः हम यह पाते हैं कि अशिय इन्य और यज्ञ-हेतु में कोई प्रानुपातिक भाग नहीं है। इसीलिए एक कहानी में हमें बताया गया है कि बोधिवन ने एक भूखी सिंहनी को खाने के लिए अपना शरीर दे दिया था। | Wা প্রায় বিষ খা গাং মানান রুক্মিান জী লিয়াও योग्यता प्रदान की थी। इसकी भाषा अविदूषित और शब्दविन्यास शुभ है। इसकी शैली ईसा की दूसरी और तीसरी शताब्दी के शिलालेखों से मिलती हैं। इसके अतिरिक्त यह छन्द के प्रयोग में प्रवीण है और उपाय मान रस के अनुरूप छन्द का प्रयोग करना जानता है। इस छन्दों में से कुछेक अम्यवहृत भी है और कला की निर्मित कविता की शोभा बढ़ाने वाले हैं। पथों में हसने निम्न भिन्न अबकारों का भी प्रयोग किया है। देखिए इन पंकियों में कितना मरल और सुन्दर अनुप्रास है--- ततकम्पे लघराघरा घरा, यतीत्य वेल्ली प्रससार सागरः । (शिबिजातक, ३८) गद में इसने दोध समासों का प्रयोग किया है; किन्तु मथ में धुधलापन कहीं कहीं हो पाया है । इसके शानदार गध का एक आदर्श भूत उदाहरण देखिए-- अथ बोधिसको विस्मयपूर्ण मनोमि मन्दनिमेषप्रविकसितमय मैरमास्वैरनुयातः शामिवीरमाणों जयाशीर्वचनपुर:सरैश ब्राहाणैरमिनन्धমালঃ স্থবিৰাখি সুরা মিলাস্থ্যবিষয় যুক্তি লক্ষ্যঃ সুসলাখমালায়ালাম ব্রাঞ্চযখাঁকালিपदस्यैवमात्मोपनायि धर्म देशयामास । বাজি অন্থ ফ্লথ বালি-মী বহু ঋষ্টির বীৰ শ্ৰী ৰাম १ तब पर्वत और मैदान सभी हिल गए, समुद्र का पानी किनारों पर चढ़कर दूर तक फैल गया।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy