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________________ २०० संस्कृत साहित्य का इतिहास दी-सचमुच इस काम को करने का यह एक प्रत्युत्तम उपाय था। पूर्वपीठिका का प्रारम्भिक अनुच्छेद ( Paragraph) बारह की श्रममव शंत्री के अनुकरण पर लिखा गया है। इस अनुच्छेद में दुर्बोध दोष समासों के लम्बे-लम्बे वाक्य हैं । पूर्वपीठिका के लेखक ने यमकानहार का अधिक प्रयोग किया है। उदाहरण के लिए एक बाक्य देखिए--- कुमारा माराभिरामा रामापौरुषा रुषा अस्मीकृतास्यो श्योपहलितसमीरणा रणामियानेन यानेनाभ्युदयाशसं राजासमकार्ष: । [उच्छ्वास २, अनुच्छेद ] (७६) सुबन्धु सुबन्धु को हम वासवदत्ता के कीर्तिमान कर्ता के रूप में जानते है। वासवदत्ता का प्राचीनतम उल्लेख बाय के हर्षचरित की भूमिका के ग्यारह पद्य में प्राक्ष होता है कवीनामगबद्दों नूनं वासवदत्तया । शकत्व पाण्डुपुत्राणां गलया कर्णगोचरम् ॥ कादम्बरी की भूमिका के बीसवें पद्य में बाण अपनी कृति को हथम प्रतिद्वयो कथा' कह कर विशेषित करता है। टीकाकार कहता है कि 'द्वयी खे यहाँ बृहत्कथा और वासवदसा अभिप्रेत हैं। साहित्य संसार में सुबन्धुविषयक कुछ लेन निस्सन्देह बाण के जो कामदेव के समान सुन्दर थे, राम इत्यादि के समान पौरुष वाले थे, जिन्होंने क्रोध में भरकर शत्रुओं को राख कर डाला था, जो बेग में वायु का भी उपहास उड़ाते थे, उन कुमारों ने दिग्विजय के लिए प्रस्थान करते हुए राजा को अभ्युदय की श्राशा से भर दिया। २ सचमुच जैसे इन्द्र की दी हुई शक्ति के कर्ण के हाथ में पहुँचने पर पाण्डवों का गर्क जाता रहा था वैसे ही वासवदत्ता को सुन लेने पर कवियों का गर्व लाता रहा।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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