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________________ गद्य-काव्य और चम्पू १.६७ से प्रसिद्ध परिशिष्ट भाग में अन्तिम राजकुमार विश्रुत की कहानी पूरी की गई है। शैखी के विचार को एक ओर रखकर देखे तो कथा की रूप-रेखा और अन्तरात्मा दोनों की दृष्टि से भी पूर्वपीठिका तथा उत्तर'पीठिका दोनों ही दडी के मुख्य ग्रन्थ से अलग प्रतीत होती हैं। कहीं कहीं तोरणों में भी परस्पर विरोध है । उदाहरण के लिए, पूर्वपीठिका में पान तारावली का और प्रमति एक और मन्त्री सुमति का पुत्र कहा गया है, परन्तु मुख्य ग्रन्थ में श्रर्थपाक्ष और प्रति दोनों कामशक के पुत्र कहे गये हैं जिनको माता क्रमशः क्रान्तिnat और खारावली हैं। पूर्वपीfrer और उत्तरपटिका दोनों ही पृथक पृथक संस्करणों में इतने पाठान्तरों के साथ उपन्तब्ध होती हैं कि उन्हें देख कर यही मानना पड़ता है कि सचमुच ये दडी के ग्रन्थ का भाग नहीं है। शैली की दृष्टि से पूर्वपीठिका का पंचम उच्चा शेष quire से कृष्ट है, इससे प्रतीत होता है कि पूर्वपीठिका में भी दो लेखकों का हाथ है । कथा का नायक राजवाहन है। उसका पिता राजहंस मगध का राजा था जो मालदाधीश से परास्त होकर वन में इधर उधर अपने दिन व्यतीत कर रहा था । नायक के नौ साथी भूतपूर्व मंत्रियों या सामन्तों के पुत्र हैं जो एक एक करके वन में लाए गए थे। जवान होने पर वे सब के सब श्रीकाम होकर दिग्विजय के लिए निकले । राजकुमार जवाइन एक काम से अपने साथियों से मिge कर पाताल में जा पहुँचा, और के नौ साथी कसे ढूंढ़ने के लिए निकल पड़े। उर पाताल से बोटने पर जब राजवाहन ने अपने साथियों को न देखा त वह भी उनकी खोज में थन दिया । अन्त में वे सब मिल गए और प्रत्येक ने अपनी अपनी पर्यटन-कथा बारी बारी सुनानी प्रारम्भ की। ये कथाएँ अदभुत, पराक्रमपूर्ण और विविध जातिक हैं। इनके क्षेत्र के विस्तार से मालूम होता है कि कवि की कल्पना-शक्ति बहुत भारी है । यह समझना भूख है कि इस कथा में किसी प्रकार भी काम हिन्दू
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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