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________________ संस्कृत साहित्य का इतिहास (७) दशकुमारचरित अन्थ के नाम से सूचित होता है कि इसमें दुख राजकुमारों की कहानी है। मुख्य ग्रन्थ का प्रारम्भ सहसा कथा के नायक राजकुमार राजवाहन की कथा से होता है। इस ग्रन्थ में आठ अध्याय हैं जिन्हें उच्छवास कहते है । १६६ पूर्वपीठिका नाम से प्रसिद्ध भूमिका-भाग मे पाँच उपवास है । इसमें सारी कथा का ढाँचा और दोनों राजकुमारों की कहानी या गई है। इस प्रकार कुमारों की संख्या दस हो जाती है । उत्तरपटिका नाम are और est का अन्योन्य सम्बन्ध ध्यान में रखकर दएडी का काल-निर्णय करने में बड़ा जबरदस्त विवाद चलता रहा है; किन्तु कुछ कारणो से भामह की अपेक्षा दरडी प्राचीन प्रतीत होता है--- (१) रुद्र के काव्यालङ्कार में आता है---' ननु दरिडीपमेधाविरुद्र भामहादिकृतानि सन्त्येवालङ्कारशास्त्राथि' । ऐसी ही बात नमिसाधु भी कहता है। ऐसा अनुमान होता है कि ये नाम काल-क्रमानुसार रखे गए हैं, जैसा कि हम मेवाविरुद्ध के बारे में भामह के ग्रन्थ में भी उल्लेख पाते हैं । (२) दरडी की निरूपणशैली Trer और अवैज्ञानिक है। इसको अपेक्षा The after ree तथा वैज्ञानिक होने के साथ साथ वस्तु के अव धारण, तर्क की तीक्ष्ण और विचार की विशदता में भी इससे बढ़कर है । (३) कभी कभी भामह 'श्रपरे, अन्ये' इत्यादि कहकर जिन मतो को उद्धृत करता है वे दडी में पाए जाते है । यह भी प्रायः निश्चित ही है कि दरडी का काव्यादर्श भट्टिकाव्य के बाद का है । भट्टि मे प्रायः उन्हीं अलङ्कारो के उदाहरण हैं जिनके लक्षण दण्डी ने दिए हैं, किन्तु भट्टि का क्रम तथा भेदो भेदादि कथन पर्या free है। यदि उसने दो का अनुसरण किया होता, तो ऐसा क्यो होता; परन्तु इतने से भी हम दण्डी के ठीक-ठीक समय को नहीं जान सकते, क्योकि महि और भामह के काल भी अनिश्चित है I
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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