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________________ घोष की शैली १३१ कवि संगीत का विशेषज्ञ और छन्दःशास्त्र का विद्वानू था। इस कविता का उद्देश्य बौद्धधर्म का प्रचार है। (३०) अश्वघोष की शैली वैदर्भी रीति का बहुत सुन्दर कवि है । उसकी भाषा सुगम और शुद्ध, शैखो परिष्कृत और विच्छित्तिशाली, तथा शब्दो पत्यास विशद और शोना है। उसके ग्रन्थों का मुख्य लक्ष्य, जैसा कि सौन्दरानन्द को समापक पषियों से प्रतीत होता है, आकर्षक वेष से भूषित करके अपने विद्वान्तो का प्रचार करना है जिससे जोग लत्य का करके निर्वाण प्राप्त कर सकें । इसी लिए हम देखते हैं कि sease दीर्घ समालों का नहीं है और न उसे बडे डोल-डौल वाले शब्द अवघा बनावटीपन ले भरे हुए अर्थों द्वारा पाठक पर प्रभाव Cater it है। यहां तक कि दर्शनों के सूक्ष्म सिद्धान्त भी बड़ी खादी भाषा में व्यक्त किए गए हैं। एक उदाहरण देखिए:-- दीपो यथा निवृतिमभ्युपेतो नैवावनि गच्छति नान्तरिक्षम् । दिशं न काशिद विदिशं न काञ्चित् स्नेहस्यात् केवल मेति शान्तिम् ॥ तथा कृती निवृतिभ्युपेतो नैवावनि गच्छति नान्तरिक्षम् । दिशं न काशिद विदिशं न काञ्चित क्लेशचयात केवलमेवि शान्तिम् ॥ ( सौन्दरानन्द १६, २८-२६ ) The इतना ही नहीं कि यहां भाषा सुबोध है, बल्कि उपमा भी बिल्कुल बरेलू और दिल में उतर जाने वाली है । कुछ विद्वान् समझते हैं कि योग्य रूपमाओं की दृष्टि से कहीं कहीं वह कालिदास से भी आगे बढ़ गया है । इसके समर्थन में निम्नलिखित उदाहरण दिया जाता है. मार्गाचलव्यविकराकुलितेन सिन्धुः शैखाधिराजतनया न ययौ न तस्थौ ॥ ( कु० सं० १, ८५ ) ( मार्ग में आए पर्वत से सुबध नदी के समान पार्वती न चली न ठहरी) | सोऽनिश्चयानापि ययौ न तस्थौ, तरंस्तरंगेष्वित्र राजहंसः । ( सौन्दरानन्द ४, ४२ ) 用
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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