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________________ सरकत साहित्य का इतिहास वियाँ - मनु और माझवल्क्या-मी इस काम की रचना है। पुराण में बहु-संख्यक पुराण भी इसी समय रचे गए । अतः ईसापूर्व क समम वह समय था जब संस्कृत में बहुत कुछ लिखा गया। सब संस्कृत का प्रभाव इतना हो गया था कि शिलालेख भी संस्कृत में ही लिखें जाने लगे और बाद का जनसाहित्य मा संस्कृत में ही प्रस्तुत हुधा । विक्रमीय सम्वत् ई० पू०१७ से प्रारम्भ होता है । इसकी प्रतिष्ठा या तो किसी बड़े हिन्दू राजा के सम्मान के लिए या किसी बड़ी हिन्दूविजय की स्मति-स्थापना के लिए रखी गई होगी। जनश्रुत-बाद के अनुसार कालिदास ईसापूर्व की प्रथम शताब्दी में हुए । (२०) कालिदास प्रद बात प्रायः सर्वसम्मत है कि कालिदास संस्कृत का सबसे बड़ा कवि है। इस कथन में कोई अत्युक्ति नहीं कि वह भारत का शेक्सपीयर है। भारतीय विद्वान और प्रालङ्कारिक उसका नाम महाकवि, कदिशिरोमण, कविकुलगुरु इत्यादि विशेषणों के साथ लेते हैं। खेद है कि से महाकवि के जीवन के ४ या काल तक के विषय में हम कुछ भी १ रुद्रदामा का शिलालेख ( शक सम्वत् ७२, ईसवी सन् १.०) संस्कृत का प्रथम शिलालेख कदापि नहीं। इस की भाषा और शैली दोनों से प्रतीत होता है कि तब भाषा का पर्याप्त विकास हो चुका था। २. पहले के शिलालेखों में एक सम्वत् को जो ५७ ई० पू० का है कत सम्वत् कहा गया है। ३. कालिदास के बारे में विस्तृत ज्ञान के लिए खएड २१ देखिये । ३. उसके जीवन के विषय में कई जनश्रुतियाँ हैं । एक जनअति के अनुसार वह जवानी तक कुछ न पढ़ा और महामूर्ख था और काल देवी के वरदान से विद्यावान् हुअा था। दूसरी के अनुसार उसकी मृत्यु लंका में एक लालची वेश्या के हाथ से हुई। किन्तु इन जनश्रुतियों में बहुत कम विश्वास हो सकता है। अतः उनसे कोई विशेष परिणाम भी नहीं निकाला जा सकता।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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