SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कौटल्य का अर्थ शास्त्र याज्ञवल्क्य और व्याप्त जैसे ऋषि-मुनियों का नाम था । ऐसी बातों का सम्बन्ध ऐतिहासिक व्यक्तियों के साथ नहीं देखा जाता है। यह पौदा भारत की भूमि में नहीं उगा है। इस बारे में दणको का साक्ष्य बड़े महत्व का है। आजकल उपलस्यमान कोटलीय अर्थशास्त्र दण्डी के हाथ में अवश्य रहा होगा, क्योंकि उसने इसमें से कई स्थल ज्यों के स्यों उधत किए हैं। वह इस का भी जिक्र करता है कि यह 'गष्ट नीति-विद्या अब श्राचार्य विष्णुगुप्त ने मौय के लिए छ हजार श्लोकों में संक्षिप्त करके कलम-बद्ध कर दी है'-इयमिदानीमाचार्यविष्णुगुप्त न मौर्याथें षड् भिः श्लोकसहस्त्र: सक्षिप्ता'। इससे प्रकट है कि दण्डी से (ईसा को बौं श०) पहले रूप का कोई परिवर्तन नहीं हुश्श होगा । तो क्या रूप का यह परिवर्तन ७वीं शताब्दी के बाद हुमा ? ऐसा अनुमान किसी ने प्रकट नहीं किया। भवभूति ने चाणक्य के अर्थशास्त्र का उद्धरण सूत्र रूप में दिया है, परन्तु दण्डी और भवभूति के बाच पचास साल से भी कम का अन्तर है और इतना समय सूत्र शैली के विकास के लिए पर्याप्त नहीं माना जा सकता है इसके अतिरिक्त मूलमन्य श्राप कहता है कि सूत्र और माष्य दोनों का रचयिता विष्णुगुप्त है-'स्वयमेव विष्णुगुप्तश्चकार सूत्रं च भाष्यं च' । अत. हम यह मानने के लिए कोई कारण दिखाई नहीं देता है कि ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियों में इस अर्थशास्त्र के गह्य रूप में परिवर्तन हुश्रा होगा। अब रही छ हजार श्लोकों की बात ! इसका उत्तर देने में हम पी. वी. काणे ( P. V. Kane) के इस कथन से पूर्णतया सहमत हैं कि यहाँ रलोक का तात्पर्य छन्द नहीं, बल्कि बत्तीस वर्षों का सङ्घ है। (घ) शैली—कौटलीय अर्थशास्त्र की शैजी आपस्तम्ब, बौधायन तथा अन्य धर्मसूत्र ग्रन्थों की शैली से बहुत मिलती जुलती है। इसमें गाय-पाका महिमस्या पाया जाता है। इसमें गा मौन पछ एक दूसरे
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy