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वृत्त एवं विषमवृत्त चित्र का लक्षण -
जिसमे रचना की विषमता प्रतीत हो उसे विषम और जिसमें प्रश्न वृत्त के नाम से ही उत्तर की प्रतीति हो जाय उसे वृत्त चित्रालकार कहते है ।
नामाख्यात चित्र का लक्षण -
जिसमे एक ही 'स' के सम्बन्ध के कारण सबन्त और तिङन्त के भेद से दो प्रकार का उत्तर प्रतीत हो, उसे नामाख्यात चित्र कहते है ।2
करो,
ताय॑ - सौत्र - शब्द - शास्ववाक्य चित्र के लक्षण -
यदि तर्क, सूत्र, शब्द और शास्त्रवाक्य से उद्भव- उत्पत्ति प्रतीत हो तो उन्हें क्रमश ताय, सौत्र, शाब्द और शास्त्रार्थ चित्र कहते हैं ।3।।
वर्णोत्तर और वाक्योत्तर चित्रों के लक्षणः
वर्ष मे ही जिसका उत्तर प्रतीत हो जाय, उसे वर्णोत्तर चित्र कहते हैं और वाक्य मे ही जिसका स्पष्ट उत्तर प्रतीत हो, उसे वाक्योत्तर चित्र कहते हैं । 4
श्लोकार्द्धपादपूर्व चित्र का लक्षण -
जिसमे केवल श्लोक का आधापाद ही उत्तर रूप प्रतीत हो उसे श्लोकार्द्धपादपूर्व चित्र कहते हैं ओर इस्के तीन भेद माने गये हैं ।
आचार्य अजितसेन ने खण्डचित्र, पदोत्तर चित्र एव सुचक्र चित्रालकारों के लक्षणों को न बताकर मात्र उदाहरण ही कलाएँ है ।
अचि0 - 2/52
वही - 2/55
अ०चि0 - 2/58
वही - 2/64 वही - 2/67 वही - 2/711, 721, 73-76