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काव्य के भेद -
आचार्य भामह ने छन्द के अभाव और सदभाव के आधार पर काव्य के दो भेदों का उल्लेख किया था । उसके पश्चात् दण्डी ने गद्य-पद्य एव मिश्र रूप से काव्य के तीन भेदों का उल्लेख किया 12
परवर्ती काल मे आचार्य अजितसेन ने दण्डी के आधार पर काव्य भेद का उल्लेख किया । दण्डी ने जिसे पद्यकाव्य की अभिधा प्रदान की थी अजितसेन ने उसे इन्दोमय तथा दण्डी के गद्यात्मक काव्य को अछन्दोमय तथा दण्डी द्वारा स्वीकत मिश्रकाव्य को मिश्रकाव्य के रूप मे ही स्वीकार किया ।
यद्यपि अजितसेन के पूर्ववर्ती आचार्य भामह, दण्डी आदि छन्द के अभाव, सद्भाव के आधार पर, भाषा के आधार पर, विषय के आधार पर तथा स्वरूप विधान के आधार पर भेदों का उल्लेख किया है । आचार्य अजितसेन पूर्व आचार्यों द्वारा निरूपित रचना, तथा भाषा आदि आधार पर काव्य भेद स्वीकार करना उचित नहीं समझा । वस्तुत गम्भीरता से विचार करने पर अजितसेन ने रचना की दृष्टि से जो विभाग किया है वह मौलिक भी है तथा परम्परानुमोदित भी है ।
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गद्य पाच तद्विधा - भामह - काव्यालकार ।
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पद्य गद्य च मिश्र च तत्र त्रिधैव व्यवस्थितम् ।
काव्यादर्श-1/14
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सच्छन्दोऽच्छन्दसी पद्यगद्ये मिश्र तु तद्युगम् । निबद्धमनिबद्धवा कुर्यात्काव्यमुख कवि ।।
अचि0 - 1/97
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भामह - काव्यालकार - दृ०परि-1 दण्डी - काव्यादर्श - दृ0 परि-।