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वैकल्पिक अभीष्ट है । मीमासा के स्वर्ग - पातालीय है। 2
निबन्धन के निरूपण के पश्चात् यमक, व्यवस्थाओं का भी निरूपण किया है ।
यमक श्लेष व चित्रकाव्य सम्बन्धी व्यवस्था
आचार्य अजितसेन ने असत् के निबन्धन सत् के अनिबन्धन तथा सनियम श्लेष व चित्रकाव्य सम्बन्धी सामान्य
काव्य रचना के नियम
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चित्रकाव्य मे व ब
यमक, श्लेषालकार और ड ल और र ल वर्णो की परस्पर एकता मानी जाती है । भिन्नता नहीं । चित्रकाव्य मे विसर्ग और अनुस्वार परिगणित नहीं होते है । अर्थात् अनुस्वार और विसर्ग की अधिकता होने पर भी चित्रालकार नष्ट नहीं होता । 3
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कृष्ण मोहन का उक्त विवेचन राजशेखर की काव्यकवि रहस्य मे परिगणित कवि नियमों से प्रभावित
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अजितसेन ने कवियों के लिए काव्य के आरम्भ मे शुभ वर्णो और गणों
विकल्पेन निबन्धन यथा
(क) कमलासम्पदो कृष्ण हरितोर्नागसर्पयो ।
पीतलोहितयो स्वर्णपरागान्निशिरवादिषु 2 चन्द्र शशैणयो कामध्वजे मकरमत्स्ययो ।
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दानवासुरदैत्यानामैक्यमेवाभिसंहितम् ।।
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सा०द० - लक्ष्मी टीका पृ0 - 560, पाद टिप्पणी, सप्तमपरिच्छेद
(ख) रलयोर्डलयोस्तद्वल्लवयोर्बवयोरपि । नमयोर्नणयोश्चान्ते सविसर्गाविसर्गयो ।। सबिन्दुकाबिन्दुकयो स्यादभेदेनकल्पनम् । यमकं तु विधातव्य कथञ्चिदपि न त्रिपात् ।।
काव्यमीमासा
अध्याय - 16
बौ डलौ रलौ चैते यमके श्लेषचित्रयो ।
न भिद्यन्ते विसर्गानुस्वारौ चित्राय न मतौ ।।
विद्याधर
एकावली 7/7
अ०चि० - 1/81