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शुक्ल पक्ष मे अन्धकार के रहने पर भी उसका वर्णन नहीं करना, कृष्णपक्ष में चन्द्र ज्योत्स्ना के रहने पर भी उसका वर्णन न करना एव अशोक वृक्ष मे फल होने पर भी उसका वर्णन नहीं करना सद्वस्तु के अनुल्लेख सम्बन्धी कवि समय है ।
कामी नर - नारियों के दातों मे लाली, कुन्द - कुसुम मे हरीतिमा और रात्रि में विकसित होने वाले कमद इत्यादि के दिन में विकसित होने पर भी वर्णन न करना सद् वस्तु का अनुल्लेख होने से कवि समय है ।' अनेक स्थानों में प्रचलित व्यवहारों का किसी विशेष स्थान मे वर्णन करना और अन्यत्र रहने पर भी वर्णन नहीं करना - सद्वस्तु का अनुल्लेख होने से कवि समय
नियमेन उल्लेख रूप कवि समय का उदाहरण -
अन्य वस्तुओं के श्वेत होने पर भी सामान्यतया पत्र, पुष्प, जल ओर वस्त्र की शुक्लता, अन्य पर्वतों पर . पर चन्दन का वर्णन, अन्य ऋतुओं मे कोयल की ध्वनि होने पर भी वसन्त ऋतु मे ही उसका वर्णन करना नियमेन उल्लेख रूप कवि - समय है ।
मेध, समुद्र, काक, सर्प, केश, भ्रमर मे ही कृष्णता एवं बिम्बाफल, बन्धूक पुष्प, मदिरा और सूर्य के बिम्ब मे रक्तता का वर्णन सद्वस्तुओं का नियमेन उल्लेख रूप कवि समय है
वही-1/75-76
चन्दने फलपुष्पे च सुरभी मालतीसुमम् । शुक्ले पक्षे तमोऽशुक्ले ज्योत्स्नाफलमशोकके ।। रक्तिमा कामिदन्तेषु हरितत्व च कुन्दके । दिवानिशोत्पलाब्जाना विकासित्व न वर्ण्यताम् । सामान्येन तु धावल्य पापुष्पाम्बुवाससाम् । चन्दन मलयेष्वेव मधावेव पिकध्वनिम् ।। अम्बुदाम्बुधिकाकाहिकेशभृगेषु कृष्णताम् । बिम्बबन्धूकनीरेषु सूर्यबिम्बे च रक्तताम् ।।
अचि0-1/77-78