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इन चार प्रकार के अर्थों में प्रत्येक के तीन - तीन भेदों का उल्लेख किया है । 1 असत् का उल्लेख, 2) सत् का भी अनुल्लेख, 13 नियम ।'
जो पदार्थ शास्त्र व लोक मे देखा या सुना न गया हो - काव्य-रचना मे उसका उल्लेख करना असत् का निबन्धन है ।
शास्त्र या लोक दोनों में वर्णित पदार्थ का उल्लेख न करना - सत् का अनिबन्धन है।
शास्त्र व लोक के नियमों से नियन्त्रित एव बहुधा व्यवहृत पदार्थ का उल्लेख करना नियम है ।
आचार्य राजशेखर ने इनका उल्लेख इस प्रकार किया है -
असत् का निबन्धन
जातिगत अर्थ मे असत् का निबन्धन-जैसे नदियों मे कमल - कुमुदादि का वर्णन, जलाशय में हस - सारसादि का वर्णन सभी पर्वतों मे सुवर्ण रत्नादि का वर्णन करना 12
द्रव्यगत असत् का निबन्धन - जैसे अन्धकार का मुष्टि-ग्राह्यत्व, सूची भेदत्व, चादनी का घडों मे भरा जाना आदि ।
काव्यमीमासा अध्याय - 14, पृष्ठ - 197
वही - पृष्ठ - 198 वही - पृष्ठ - 202, अ0 - 14