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विषयों का उल्लेख किया है । इन्होंने वर्षा ऋतु मे मेघ, मयूर, वर्षा कालीन सौन्दर्य झझावात वृष्टि के जलकण फुहार व जलपात, हसों का निर्गमन, केतकी कदरबादि की कलिकाए और उसके विकास का चित्रण करने की चर्चा की है ।' इन्होंने कदम्ब, निम्ब तथा कुटज का वर्णन नहीं किया है । जो भरत कृत नाट्यशास्त्र मे अधिक है । आचार्य केशव मिश्र द्वारा निरूपित विषय वस्तुओं पर अजितसेन का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है 12
शरद ऋतु -
नाट्यशास्त्र के अनुसार शरद् ऋतु मे सभी इन्द्रियों की स्वस्थता, दिशाओं की स्वच्छता तथा विचित्र कुसुमों के सौन्दर्य के वर्णन करने का निर्देश दिया गया है । अजितसेन कृत शरद् ऋतु के वर्ण्य विषयों का निरूपण भरतमुनि की अपेक्षा नवीन है । इनके अनुसार शरद् ऋतु मे चन्द्रमा व सूर्य की किरणों की स्वच्छता के वर्णन करने की बात कही गयी है । हसो के आगमन, वृषभादि पशुओं की प्रसन्नता, धन, कमल, सप्तपर्णादि पुष्पों का एव जलाशय आदि की स्वच्छता के प्रतिपादन की भी चर्चा की है । केशव मिश्र कृत निरूपण भरत व अजित सेन कृत वर्णन से प्रभावित है ।
अचि0 - 1/52
वर्षासु उनकेकिश्रीझञ्झानिलसुवा कणा । हसनिर्गतिकेतक्य कदम्बमुकुलादय ।। वर्षासु घनशिखिस्मयहसगमा पककन्दलोद्भेदौ । जातीकदम्बकेतकझञ्झानिलनिम्बगाहलिप्रीति ।। सर्वेन्द्रयस्वस्थतया दिक्प्रसन्नतया तथा । विचित्रकुसुमालोकै शरद तु विनिर्दिशेत् ।।
अ00 - 6/2
ना०शा0 - 26/27
शरदन्द्विनसुव्यक्तिहसपुगवहृष्टय । शुभ्राभ्रस्वच्छवा पद्मसप्तच्छदजलाशया ।
अ०चि०- 1/53
शरदीन्दुरविपटुत्व जलाच्छताऽगस्त्यहसवृषदया । सप्तच्छदा सिताभ्राब्जरूचि शिखिपक्षमदपाता ।।
अ00 - 6/2