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मन्त्र के अन्तर्गत वर्षनीय विषय -
मन्त्र मे कार्यारम्भ करने का उपाय, देश-काल का विभाग, पुरुष व द्रव्य सम्पत्ति, विघ्न प्रतीकार, कार्यसिद्धि - इन पाँचों अगों, साम, भेद, दान ओर दण्ड - इन चार उपायों का, प्रभाव - उत्साह ओर मन्त्र इन तीन शक्तियों का वर्णन करना चाहिए ।'
दूत के वर्णनीय विषय -
दूत का वर्णन करते समय उसकी स्वपक्ष तथा परपक्ष के वैभव तथा दोषादि का ज्ञान तथा वाक्चातुर्य का होना आवश्यक बताया गया है । भामह, दण्डी तथा उद्भट आदि आचार्यो ने इसका उल्लेख नहीं किया है ।
मनुस्मृति मे राजदूत को सब शास्त्रों मे कुशल इगित आकार और चेष्टा से मन का भाव समझने वाला, पवित्र, चतुर और कुलीन कहा गया है । वह अनुरक्त, चतुर, मेधावी, देशकालवित्, रूपवान, निर्भीक और वाग्मी होता है । राजदूत ही बिछडे हुओं को मिलाता है और मिले हुओं को छोडता है । वह ऐसा काम करता है जिससे शत्रुपक्ष का जन-बल छिन्न - भिन्न हो जाय ।
मन्त्रे पञ्चागतोपायशक्तिनैपुण्यनीतय ।
अचि0 - 1/46
दूते स्वपरीक्षश्रीदोषवाक्कोशलादय ।
अचि0, पृ0 10
मनुस्मृति 7/63
मनुस्मृति 7/63, 64, 66 पृ0 - 241 भाषाप्रकाशतीकाएँ दूत चैव प्रकुर्वीत सर्वशास्त्रविशारदम् । इगिताकारचेष्टज्ञ शुचि दक्ष कुलोद्गतम् ।। अनुरक्त शुचिर्दक्ष स्मृतिमान्देशकालवित् । वपुष्मान्नीतमावाग्मी दूतो राज्ञ प्रशस्यते ।। दूत एव हि सधत्ते भिनच्येव च सहतान् । दूतस्तत्कुरुते कर्म भिद्यन्ते येन मानवा ।।
वही 7/64
वही 7/66