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नाट्यशास्त्र के प्रणेता महामुनि भरत न सेनापति व अमात्य दोनों को धीरोदात्त प्रकृति का नायक बताया है ।। अत भरत के अनुसार धीरोदात्त मे प्रतिपादित गुण का होना सेनापति मे आवश्यक है । डॉ० राजदेव मिश्र ने सेनापति को शीलवान, प्रियभाषी, आलस्य हीन, वीर, देशकालज्ञाता, अनुरक्त और कुलीन बताया है | 3
देश के वर्णनीय विषय
आचार्य अजितसेन ने देश मे पद्मरागादि मणियाँ, नदी, स्वर्ण, अन्न भण्डार, विशाल भूमि, गाँव, किला, जनबाहुल्य, नहर इत्यादि का वर्णन करना आवश्यक बताया है इससे देश की समृद्धशालिता का परिचय प्राप्त होता है परवर्ती काल मे विविध प्रकार के खनिज द्रव्यों, विक्रेताओं आदि से सुशोभित दुर्ग, ग्राम, जनादि के आधिक्य से परिवर्धित नदी मातृक आदि के रूप मे वर्णित करने की चर्चा की है । जिसपर अधिकाशत अजितसेन का प्रभाव परिलक्षित
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ग्राम के वर्णनीय विषयः -
लता - वृक्ष,
गाय बैल इत्यादि
अजित सेन के अनुसार अन्न, सरोवर, पशुओं की आधिक्य व उनकी चेष्टाओं का रमणीय की सरलता, अज्ञानता, घटी यन्त्र आदि की शोभा का रोचक वर्णन काव्य के सौन्दर्य
वर्णन करना चाहिए । ग्रामीणों
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सेनापतिरमात्यश्च धीरोदात्तो प्रकीर्तितो ।
अविकत्थनः क्षमावानतिगम्भीरोम हासत्व । स्थेयान निगूढमानो धीरोदात्तो दृढव्रत ।
'संस्कृत रूपको के नायक' पृष्ठ- 96 ( उद्धृत - नाट्यशास्त्र - 24/36-370
देशे मणिनदीस्वर्णधान्याकरमहाभुव । ग्राम दुर्गजनाधिक्यनदीमातृकतादयः । । देशे बहुरवनिद्रव्यपव्य धान्यकरोद्भवा । दुर्गग्राम जनाधिक्यनदीमातृकतादय ।।
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ना०शा० 34 / 18
सा0द0 परि0-6
अ०चि० 1 / 37 पृ0-8
अलकारशेखर 6/2