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तत्वों के रूप मे किसी भी प्रकार का उल्लेख नहीं किया है तथापि इन्होंने काव्य के विभिन्न उपादान तत्वों की योजना की है । जिनसे रीति, वृत्ति अलकार व रसों का भी निबन्धन किया गया है । अत ऐसी परिस्थिति में यह स्वीकार कर लेना अनुपयुक्त न होगा कि इन्होंने दोषों से रहित एव रीति, वृत्ति, अलकार तथा रसादि से युक्त शब्दार्थ युगल को काव्य माना है ।
रुद्रट के अन्तर अलकार का युग प्राय समाप्त हो जाता है और एक नवीन युग का प्रारम्भ होता है । इसी युग मे आचार्य आनन्दवर्धन जैसे युगप्रवर्तक पुरुष का आविर्भाव हुआ । इन्होंने ध्वनि सिद्धान्त की प्रतिष्ठापना की तथा सहृदय हृदयालादक शब्दार्थ युगल को काव्य के रूप में स्वीकार किया ।' आचार्य कुन्तक ने वक्रोक्ति को काव्य का महनीय तत्व स्वीकार किया है । जिसमे शब्दार्थ के साहित्य को आवश्यक बताया है । लोकोत्तर चमत्कारकारी वैचित्र्य की प्रतीति कराना ही वक्रोक्ति है । इन्होंने इसे विचित्र अभिधा' भी कहा है .
शब्दार्थो सहि तो वक्रकविव्यापारशालिनी । बन्धे व्यवस्थितौ काव्य तद्विदाल्हादकारिणी ।।
विक्रोक्तिजी0 1/6 व 1/100
आचार्य महिम भट्ट अनुभाव विभाव की वर्णना से युक्त वाक्य को काव्य के रूप मे स्वीकार किया है ।2 इनकी रस- वर्णनात्मक परम्परा का अवलोकन करने से विदित होता है कि ये आनन्दवर्धन की परम्परा से भिन्न है । यद्यपि ये स्पष्ट रूप से ध्वनि सिद्धान्त को अस्वीकार करते हुए प्रतीत होते है तथापि आनन्द वर्धन ने जिस तत्व की मीमासा ध्वनि के रूप में की है महिम भट्ट ने उसी तत्व को ध्वनि न मानकर 'अनुमेय' कहा है ।
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सहृदयहृदयालदि-शब्दार्थमयत्वमेव काव्यलक्षणम् ।
ध्वन्यालोक ।।। वृत्तिा अनुभावविभावाना वर्णनाकाव्यमुच्यते, व्यक्तिविवेक पृष्ठ-102 अर्थोऽपिद्विविधो वाच्योऽनुमेयश्च । तत्र शब्दव्यापार विषयो वाच्य स एव मुख्य उच्यते ।
वही पृष्ठ 47 काव्यारम्भस्यसाफल्यमिच्छिता तत्र प्रवृत्ति निबन्धनभावे नास्य रसात्मकत्व भावस्यमुपमन्तव्य तन्मात्रप्रयुक्तश्चध्वनिव्यपदेश ।
वहीं पृष्ठ-102 रसात्मकता भावे मुख्यवृत्या काव्यव्यपदेश एव न स्यात् । वही पृष्ठ-103