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शोभा, विलासः
दक्षता, शूरता तथा नीच कमो से घृपा को शोभा कहा गया है । हास्यपूर्वक कथन, धैर्य तथा प्रसन्न दृष्टिपात विलास के गुण हैं ।
औदार्यः
दान या अदान के
आधिक्य को औदार्य की अभिधा
प्रदान
की
गयी है ।
लालित्य -
मदु तथा श्रृंगारिक चेष्टाओं को ललित के रूप में स्वीकार किया गया है ।
उपर्युक्त गुण दशरूपक से प्रभावित हैं ।'
नायिकाओं के भेद तथा स्वरूपादि का निरूपण:
नायक के स्वरूप तथा भेद निरूपण के पश्चात् पूर्वोक्त नायक के गुणों से युक्त नायिकओं के भेद तथा स्वरूप का निरूपण किया जाना आवश्यक हो जाता है । आचार्य अजितसेन ने स्वकीया, परकीया और सामान्या रूप से नयिकओं को तीन भागें में विभजित किया है 12
परकीया को अन्योढा और कन्या - दो भागों में विभाजित किया है।' वेश्या को सामान्यतया साधारण स्त्री के रूप में वर्णित किया है । स्वकीया नायिका के मुग्धा, मध्या तथा प्रगल्भा इन तीन भेदों का उल्लेख भी किया है । मध्या नायिका के धीरा अधीरा और धीरा धीरा तीन अन्य भेद भी किए हैं । प्रगल्भा नायिका के भी मध्या नायिका के समान भेद किए गए हैं । पुन मध्या व प्रगल्भा के ज्येष्ठा तथा कनिष्ठा भेद भी किए गए हैं । अत नायिकओं के कुल 13 भेद हो जाते हैं । जो इस प्रकार हैं -
दशरूपक, 2/10 अचि0, 5/337 अचि०, 5/339 वही, 5/42