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अपने मुँह से अपनी प्रशंसा न करने वाला, अतिबलशाली, अत्यन्त गम्भीर धीरोदात्त नायक होता है ।।
पूर्ववर्ती आचार्य धनञ्जय तथा परवर्ती आचार्य विद्यानाथ, अमृता नन्दयोगी तथा विश्वनाथ की परिभाषाएँ प्राय समान हैं 12
धीरललित नायक -
प्राय चिन्तारहित रहता है । विविध कलाओं के प्रति उसकी अभिरुचि रहती है । मानो इसीलिए वह सुखी भी रहता है । आचार्य अजितसेन ने यह भी बताया है कि उसके कार्य की देखभाल निपुण मन्त्री अमात्यादि करते है । इसलिए वह निश्चिन्त रहकर ललित कलाओं के प्रति आसक्त रहकर सुखमय जीवन व्यतीत करता है
धीरशान्त नायक:
___"धीरप्रशान्त या धीरशान्त नायक पूर्वोल्लिखित विनीतिता आदि गुणों से युक्त ब्राह्मण वणिक् तथा सचिव आदि होते है ।" दशरूपककार की भी यही मान्यता है । आचार्य अजितसेन के अनुसार कला, मृदुता, सौभाग्य, विलास, शुचिता से सम्पन्न, रस्कि तथा सुप्रसन्न और सुखी नायक को धीरशान्त के रूप में स्वीकार किया गया है । इन्होंने जातिगत तथा कर्मगत भेदों के आधार पर इसका विभाजन नही किया । जैसा कि इनके पूर्ववर्ती आचार्य दशरूपककार ने किया है अनुसन्धात्री के अनुसार किसी भी जाति का व्यक्ति यदि उक्त गुणों से सम्पन्न है तो उसे धीरशान्त
दयालुरनहंकार क्षमावानविकत्थन. । महासत्वोऽतिगम्भीरो धरोदात्त स्मृतोयथा ।। अ०चि0, 5/314
का द0रू0, 2/4, ख प्रताप0 श्लोक 28, ग अ0सं0, 4/4, (0 सा0द0, 3/32
का ना0द0, 1/9, ख द0रू0, 2/3 , कलासक्त. सुखी मन्त्रिसमर्पित निजक्रिय । भोगी मृदुरचिन्तोय स धीरललितो यथा ।।
अचि0, 5/316 संस्कृतरूपको के नायक, नाट्यशास्त्रीय विमर्श ले० डॉ० राजदेव मिश्र, पृ0 77
का द0रू0, 2/4, विप्रवपिक्सचिवादीना प्रकरणनेतृपामुपलक्षणम् । धनिक-वृत्ति। कलामार्दवसौभाग्यविलासी च शुचि सुखी । रसिक. सुप्रसन्नो यो धीरशान्तो मतो यथा ।।
अचि0, 5/318