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आचार्य भरत ने श्लेष, प्रसाद, समता, समाधि, माधुर्य, ओज, सुकुमारता, अर्थव्यक्ति, उदारता और कान्ति ये दश गुण माने हैं । '
अग्निपुराणकार ने श्लेष, लालित्य, गाम्भीर्य, सौकुमार्य, उदारता, सती और यौगिकी ये सात शब्दगुण माधुर्य संविधान, कोमलता, उदारता, प्रौढि और सामयिकत्व ये छ अर्थनुप, एव प्रसाद, सौभाग्य, यथासख्य, उदारता, पाक और राग ये छ उभयगुणअर्थात् शब्द और अर्थ दोनों के गुप मिलकर उन्नीरा गुप क्वालाए हैं । 2
वामन ने प्राचीन मत के अनुसार गुणों का विशद विवेचन किया है इनके गत मे गुर्षो की राख्या कीरा हैं जिसमें दश शब्द गुण तथा दश अर्थगुण है । जो नाम शब्द गुण के हैं वही अर्थगुणों के भी रखे गए हैं किन्तु लक्षणों में भेद है । वे दश गुण है श्लेष, प्रसाद, समता, माधुर्य, सुकुमारता, अर्थव्यक्ति, उदारता, ओज, कान्ति और समाधि 13
भोजराज ने वामन के दश शब्दनुपों को स्वीकार कर, उदात्वता, अर्जितता, प्रेयान् सुशब्द सूक्ष्मता, गम्भीरता, विस्तर, संक्षेप, संमितत्व, भाविक, गति, रीति, उक्ति और प्रौढि इन चौदह अन्य गुणों को मानकर इनकी संख्या 24 कर दी ।
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आचार्य अजितसेन ने भोज द्वारा निरूपित उक्त 24 गुणों को स्वीकार
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श्लेषोलालित्यगाम्भीर्ये सैौकुमार्यमुदारता । सत्येव यौगिकी चेतिगुपा शब्दस्य सप्तधा ।। माधुर्य संविधानं चकोमलत्वमुदारता ।
प्रौढि सामयिकत्व च तद्भेदा षट् चकासति ।।
तस्य प्रसाद सौभाग्य यथास्थ्यमुदारता ।
पाको राज इति प्राज्ञै षट् प्रपञ्चा प्रपञ्चिता
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अ०पु०, उद्धृत रसगगाधर प्रस्तावना, व्याख्याकार- प० मदन मोहन झा
श्लेष प्रसाद समता माधुर्यं सुकुमारता ।
अर्थव्यक्तिरुदारत्वमोज कान्ति समाधय ।।
अ०सू०, उद्धृत रसगाधर प्रस्तावना, व्या० मदन मोहन झा ०क०भ० 1/63, 64, 65
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