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उपयुक्त श्लोक मे अनन्त = देव मार्ग आकाश । द्योतन : प्रकाशक सूर्य, पुरु पक्ष मे असीम बोध । व्याख्यान से अनन्त द्योतन मे शब्द शक्ति मूलता है । 'सर्वलोक भासक विग्रह' तथा 'सर्वश्लाध्यमानमहागुण' मे अर्थशक्ति मूलकता है । अतएव उभयशक्तिमूलक का उदाहरण है । यहाँ पुरु और रवि मे उपमा अलकार की ध्वनि है ।
नाट्य वृत्तयाँ:- वृत्तयों का सर्वप्रथम विक्चन नाट्यशास्त्र में प्राप्त होता है । जिसमें भारती, सात्वती, कैशिकी एव आरभटी आदि वृत्तियों की चर्चा की गयी है।' भारती वृत्ति का ग्रहण ऋग्वेद से सात्वती का यजुर्वेद से और कैशिकी का सामवेद से तथा शेष का अर्थववेद से ग्रहण हुआ है । इन वृत्तियों का उल्लेख धनञ्जय के दशरूपक में भी प्राप्त होता है । इन्होंने नायकदि के व्यापार को वृत्त कहा है तथा कैशिकी सात्वती आरभटी तथा भारती चार भेद किए है ।
आचार्य अजितसेन ने भी रसों की स्थिति को बोध करने वाली रचनाओंमे विद्यमान वृत्तयों की संख्या चार ही स्वीकार की है ।
कौशिकी वृत्त का स्वरूप.
आचार्य भरतमुनि के अनुसार विशेष वेशभूषा से चिन्हित स्त्रीपात्रों की बहुलता से युक्त, नृत्य गीत की प्रचुरता से युक्त, श्रृंगार प्रधान, चारु -विलासों को कैशिकीवृत्ति के रूप में स्वीकार किया है और नर्म, स्फूर्ज, नर्मस्फोट, नर्मगर्भ के भेद से इसके चार भेदों का उल्लेख किया है । आचार्य धनञ्जय ने भी उक्त भेदों को स्वीकार किया है । आचार्य अजितसेन के अनुसार जहाँ सुकोमल सन्दी से श्रृंगार और करुण रस का वर्णन हो वहाँ कैशिकी वृत्ति होती है । इन्होंने इसके भेद-प्रभेद का उल्लेख नहीं किया । इनके पूर्ववती आचार्यों ने करुण रस मे कैशिकी वृत्त का उल्लेख नहीं किया ।
सात्वती वृत्ति का स्वरूप.
आचार्य भरतमुनि के अनुसार जहाँ वचिक तथा अंगिक रूप से इस
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ऋग्वेदाद् भारती वृत्तियुजुर्वेदात्तु सात्वती । केशिकी सामवेदाच्च शेषा चाथर्वणात्तथा ।।
ना०शा0, 22/24 द0रू0, 2/47 4 रसावस्थानसूचिन्यो कृत्तयोरचनाश्रया. । कैशिकी चारभट्यन्यासात्वती भारतीपरा ।।
अचि0 5/158 नाOशा0, 22/47, 48 द0रू0, 2/48 पूर्वाद्ध अत्यन्तमृदुसंदर्भ शृंगारकरूणौरसौ । वयेतेयत्रधीमद्भि. कैशिकी वृत्तिरिष्यते।।
अ०चि0, 5/160
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