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श्रृंखलान्यायमूलक अलंकार -
कारपमाला.
आचार्य भामह, वामन तथा उद्भट ने इसका उल्लेख नहीं किया । प्रथमत रुद्रट ने इसका निर्वचन वास्तव वर्ग के अलकारों मे किया है । प्रथम-प्रथम पदार्थ से उत्तर-उत्तर पदार्थ उत्पन्न होते है । अत परवर्ती पदार्थों के प्रति पूर्व- पूर्ववती पदार्थ कारण होने के कारण इस अलकार को कारणमाला की अभिधा प्रदान की गयी है ।।
आचार्य मम्मट ने भी रुद्रट का अनुसरण किया है ।2 आचार्य शोभाकर मित्र उत्तर-उत्तर पदार्थ को भी पूर्व-पूर्व पदार्थ के प्रति कारण बताया है तथा इसे शृखला अलकार के रूप में निरूपित किया है । रुद्रट मम्मट तथा सर्वस्वकार ने इसकी
ओर ध्यान नहीं दिया । अप्यय दीक्षित ने रत्नाकरकार के विचारों का अनुमोदन किया है 4
आचार्य अजितसेन के अनुसार जहाँ पूर्व-पूर्व वर्षित पदार्थ उत्तरोत्तर वर्णित पदार्थों के कारण रूप में वर्णित हो वहाँ कारण माला अलकार होता है । इनकी परिभाषा पर रुद्रट, मम्मट तथा स्य्यक का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है ।
विद्यानाथ कृत परिभाषा अजितसेन से प्रभावित है ।
एकाक्ली:
आचार्य रुद्रट ने अर्थों की परम्परा को उत्तरोत्तर उत्कृष्ट किए जाने
कारपमाला सेय यत्र यथापूर्वमेतिकारपम् । अर्थानां पूर्वार्थाद्भवतीद सर्वमेवेति ।। यथोत्तरं चेत्पूर्वस्य पूर्वस्यार्थस्य हेतुता । तदा कारपामालास्यात् ।
काव्या0, 7/84
का0प्र0, 10/120 अ0र0, सूत्र 96
कुव0, 104
उत्तरोत्तरस्य पूर्वपूर्वानुबन्धित्व विपर्ययोवा श्रृंखला । गुम्फ कारणमाला स्याद्यथाप्राकमान्तकारणे । प्रत्युत्तरोत्तर हेतु पूर्व पूर्व यथा क्रमात् । असौ कारपमालाख्यालकारों भपितो यथा । प्रताप० पृ0 - 570
अ०चि0, 4/325