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देवी के पुत्र और 'राय' नाम से विख्यात सोमवशी जैन नरेश कामिराय के पढने के
लिए सक्षेप मे की है । प्रशस्तिपद्य निम्न प्रकार है
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राज्ञी विट्ठलदेवीति ख्याता शीलविभूषणा ।
तत्पुत्र कामिरायाख्यो 'राय' इत्येव विश्रुत ।।
तद्भूमिपालपाठार्थमुदितेयमलंकिया ।
सक्षेपेण बुधैर्येषा यद्भात्रास्ति (20 विशोध्यताम् ।।
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श्रृगारमञ्जरी की दो प्रतियाँ उपलब्ध है 1
'श्रीमदजितसेनाचार्य - विरचिते शृगारमजरीनामालकारे तृतीय
एक प्रति के अन्त मे
परिच्छेद ' तथा दूसरी प्रति
शृगारमञ्जरीनामालकारोडयम्"
मे "श्रीसेनगणाग्रगण्यतपोलक्ष्मीविराजिताजितसेनदेवयतीश्वरविरचित लिखा है । विजयवर्णी ने राजा कमिराय के निमित्त श्रृगारार्णवचन्द्रिका ग्रन्थ लिखा है । सोमवशी कदम्बों की एक शाखा वग वश के नाम से प्रसिद्ध हुई । दक्षिण कन्नड जिले तुलु प्रदेश के अन्तर्गत वगवाडपर इस वश का राज्य था । बारहवींतेरहवीं शती के तुलुदेशीय जैन राजवशों मे यह वश सर्वमान्य सम्मान प्राप्त किये हुए था । इस वश के एक प्रसिद्ध नरेश वीर नरसिह वगराज (1157-1208 ई० 0 के पश्चात् चन्द्रशेखरवश और पाण्ड्यवग ने क्रमश राज्य किया । तदनन्तर पाण्ड्यवग की बहन रानी विट्ठलदेवी 11239-440 राज्य की सचालिका रही और सन् 1245
जैनग्रन्थ प्रशस्ति संग्रह, प्रथम भाग, वीर सेवा मन्दिर, ई0 सन् 1954, पृ0 90, पद्य 46-47 | उद्धृत - अ०चि० प्रस्तावना पृ०स० 320