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आचार्य विश्वनाथ, अप्यय दीक्षित एव पण्डित राज जगन्नाथ कृत परिभाषा अजितसेन के समान है ।'
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विशेषण-वैचित्र्यमूलक अलंकार -
परिकरः
आचार्य रुद्रट के अनुसार जहाँ कोई वस्तु या विशेष अभिप्राय युक्त विशेषणों द्वारा विशेषित हो वहाँ परिकर अलकार होता है । द्रव्य, गुण, क्रिया एवं जाति के आधार पर इसके चार भेदों का उल्लेख किया है ।
मम्मट ने अनेक सार्थक विशेषणों के द्वारा वर्णनीय पदार्थ के पोषण मे इस अलंकार को स्वीकार किया है । मम्मट के द्वारा इस अलंकार का लक्षण स्थिर हो गया ।
आचार्य अजितसेन रुय्यक जयदेव विद्यानाथ, विश्वनाथ तथा अप्पय दीक्षित एवं पं0 राज जगन्नाथ तक इसके स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं आया ।
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का सा0द0, 10/11 श्लेषो वावऍभयाश्रित. ।।
कुव०, 64 अनेकार्थ शब्द विन्यास श्लेष. । वही, पृ0 - 98 चौखम्बाई उभयमप्यर्थालंकार इति स्वाभिप्राय ।।
वही, पृ0 - 105 हम श्रुत्थैकयानेकार्थप्रतिपादन श्लेष ।।
तच्च द्वधा । अनेक धर्म पुरस्कारेपेकधर्मपुरस्कारेण च । आद्यं द्वधा । अनेक शब्दप्रतिमानद्वारा एकशब्दप्रतिमानद्वारा चेति विविध श्लेषः ।
र०सं०, पृ० - 523 साभिप्राय सम्यग्विशेषणैर्वस्तु यद्विशिष्यते । द्रव्यादिभेदभिन्नं चतुर्वध.परकरः सद्धति ।। ।
काव्या०, 712 विशेषणैर्यत्साकूतैरूक्ति परिकरस्तु स. ।
का0प्र0, 10/118 का विशेषणे त्वभिप्राययुते परिकरोयथा । स्वयोगे चक्रिपस्तापमह्नितेन्दुमुखी वधु. ।।
अचि0, 4/245 ख विशेषण साभिप्रायत्वपरिकरः ।
अ0स0, सू0 32 गः अलंकार. परिकर साभिप्राये विशेषणे ।
चन्द्रा0, 5/39 घ0 प्रताप0 पृ0-530 ड सा0द0, 7/9 च कुव0, 62
छ र0मं0, पृ0 - 519