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परवी आचार्य विद्यानाथ विश्वनाथ तथा जगन्नाथादि की परिभाषाएँ प्राय अजितसेन के समान है ।'
दृष्टान्त -
आचार्य भामह के अनुसार जहाँ अभिमतार्थ का बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव से निर्देश किया जाए वहाँ दृष्टान्त अलकार होता है ।।
__ आचार्य उद्भट के अनुसार जहाँ उपमेय तथा उपमान वाक्यों मे एव उनके धर्मों में बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव हो और सादृश्य व्यग्य हो वहाँ दृष्टान्त अलकार होता है । इन्होंने इसे काव्य दृष्टान्त की अभिधा प्रदान करके न्याय दृष्टान्त से भिन्न बताया है ।
___ आचार्य मम्मट ने भामह तथा उद्भट की भाँति इसमें बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव की चर्चा की है तथा इसमे उपमान, उपमेय, साधारण धर्म इन तीनों प्रतिबिम्ब की भी चर्चा की है इनके अनुसार बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव अलंकार का प्राण है।
आचार्य अजितसेन के अनुसार जहाँ दो वाक्यों मे बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव रूप सामान्य धर्म का कथन हो वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है । इन्होंने इसके साधर्म्य दृष्टान्त एवं वैधर्म्य दृष्टान्त - रूप से दो भेदों का उल्लेख किया है।
का प्रतापरूद्रीयम् - रत्नापणबालक्रीडासहित, पृ0 - 521 खि सा0द0, - 10/49 म कुवलयानन्द - 51 घा रसगंगाधर - पृ0 - 442 उक्तस्यार्थस्य दृष्टान्त प्रतिबिम्ब निदर्शनम् ।।
भा०-काव्या०, 8/94 इष्टस्यार्थस्य विस्पष्टप्रतिबिम्बनिदर्शनम् । यथेवादिपदै शून्यं बुधैर्दृष्टान्त उच्यते ।।
काव्या0सा0सं0, 6/8 इष्टस्य प्रकरणिकतया ----- तत्र काव्यदृष्टान्तोनामालंकार ।
लघु वृत्ति, पृ0 - 85 दृष्टान्त पुनरेतेषा सर्वेषां प्रतिबिम्बनम् ।।
काव्यप्रकाश 10/102 दृष्टोऽन्तो निश्चयों यत्र स दृष्टान्त ।।
वही वाक्ययोर्यत्र चेद् बिम्बप्रबिम्बतयोदितम् । सामान्यं सह दृष्टान्त. साधर्म्यतरतो द्विधा ।।
अ०चि0, 4/233
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