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आचार्य अजितसेन कृत परिभाषा पर भामह, दण्डी तथा मम्मट का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है इनके अनुसार प्रस्तुत और अप्रस्तुत पदार्थों मे जहाँ एक धर्माभिसम्बन्ध होने पर उपमान उपमेय की प्रतीति हो वहाँ दीपक अलकार होता है कही-कही ओपम्य के न रहने पर भी दीपक अलकार अभीष्ट है। दीपक का अर्थ है दीपयति प्रकाशयति इति दीपक
जो प्रकाशित करे 1 प्रस्तुत में निविष्ट समान धर्म, प्रसग से अप्रस्तुत को भी जहाँ
वह दीपक है
प्रकाशित करे प्रस्तुत का धर्म जहाँ अप्रस्तुत मे अन्वित हो, वहाँ दीपक अलकार होता है । अथवा दीप इवेति 'सज्ञाया कन् | समुद्रबन्ध, अलकार सर्वस्व 24 0 दीप की भाँति प्रकाशक होने से दीपक है । दीप को प्रासाद पर रख दीजिए, वह गली को भी आलोकित करेगा । इसी प्रकार प्रस्तुत मे स्थित धर्म अप्रस्तुत के धर्म का ज्ञापन करता है । 102
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वाक्यार्यमूलक अलंकार:
प्रतिवस्तूपमा:
(ख)
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आचार्य भामह के अनुसार जहाँ यथा वा आदि समानता के वाचक पदों का अभाव होने पर भी समान वस्तु विन्यास के कारण गुण साम्य की प्रतीति हो वहाँ प्रतिवस्पमा अलकार होता है । आचार्य भामह ने प्रतिवस्तूपमा के निम्नलिखित तत्वों पर विचार किया है
(क)
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प्रतिवस्तूपमा में साधारण धर्म एक ही होता है, किन्तु उसे भिन्न-भिन्न शब्द द्वारा प्रकट किया जाता है किन्तु दृष्टान्त मे दो समान धर्म होते हैं एवं उन्हें दो शब्दों द्वारा कहा जाता है ।
सामस्त्ये प्रस्तुतान्येषा तुल्यधर्मात्प्रतीयते । औपम्यं दीपकं तत्स्यादादिमध्यान्ततस्त्रिधा ।। क्वचिदौपम्याभावेऽपि दीपक यथा ।
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प्रतिवस्तूपमा मे वस्तु प्रतिवस्तुभाव होता है तो दृष्टान्त में बिम्ब प्रति बिम्बभाव 1 प्रतिवस्तूपमा में साधारण धर्म कथित होता है पर दृष्टान्त साधारण धर्म अपने मूल रूप में नहीं रहता ।
चन्द्रालोक, सुधा हिन्दी टीका, ले0 सिद्धसेन दिवाकर, पृ०
अ०चि०, 4 / 222 एवं वृत्ति
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