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अन्योन्य -
आचार्य रुद्रट के अनुसार जहाँ दो पदार्थो मे परस्पर क्रिया द्वारा एक ही कारकभाव हों और उससे किसी तत्व विशेष की अभिव्यक्ति हो, वहाँ अन्योन्य अलकार होता है ।
- आचार्य मम्मट की परिभाषा रूद्रट से प्रभावित है । इनके अनुसार जहाँ क्रिया के द्वारा दो पदार्थों की परस्पर उत्पत्ति की चर्चा की जाए वहाँ अन्योन्य अलकार होता है 12
आचार्य अजितसेन के अनुसार जहाँ परस्पर एक क्रिया द्वारा उत्पाद्यउत्पादक भाव हो वहाँ अन्योन्य अलकार होता है । उत्पाद्य-उत्पादक भाव परस्पर भूष्य - भूषक भाव की सृष्टि करता है ।3।
परवर्ती आचार्यों में विद्यानाथ एव विश्वनाथ ने अजितसेन के मत को ही स्वीकार किया है ।
विषम -
इस अलकार का निरूपण भामह, दण्डी, एव वामन ने नहीं किया। इसको उद्भावित करने का श्रेय आचार्य रुद्रट को है । इनके मत मे विषम अलकार वास्तव मूलक और अतिशय मूलक होता है । जहाँ दूसरे के अभिप्राय की स्थिति की आशका से वक्ता दो पदार्थों के सम्बन्ध को विघटित करता है, वहाँ वास्तव मे विषम का प्रथम प्रकार होता है । जहाँ दो पदार्थों का अनुचित सम्बन्ध वर्णित होता है वहाँ द्वितीय प्रकार का विषम होता है ।
कार्यकारण सम्बन्ध मे गुणगत अथवा क्रियागत विरोध होने पर अतिशयमूलक के दो भेद होते है।
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रू0,काव्या०, 7/91 का0प्र0 - 10/120 अ०चि0, 4/210 तदन्योन्य मिथो यत्रोत्पाद्योत्पादकता भवेत् । रुद्रट काव्याः - 7/47/49 वही, 9/45
प्रताप०, पृ0-512