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थे । उनके दो पुत्र थे - मसन सेट्टि और मारिसेट्टि । मारिसेट्टि ने दोरसमुद्र मे
एक उच्च जैन मन्दिर बनवाया ।"
न0 1, सन् ।।69 ई0, ग्राम वन्दियर । ? । म-+ जैन बस्ती के पाषाण पर । इस समय होयसल बल्लादेव दोरसमुद्र में राज्य कर रहे थे । यहाँ मुनि वशावली दी है । श्री गौतम भद्रबादु, भूतबलि, पुष्पदन्त, एकसन्धि सुमतिभ, समन्तभद्र, भट्टाकलकदेव, वक्रग्रीवाचार्य, वज्रनन्दि भट्टारक, सिहनन्द्याचार्य, परिवादिमल्ल, श्रीपालदेव, कनकसेन, श्री वादिराज, श्री विजयदेव, श्रीवादिराजदेव, अजितसेन, पण्डितदेव ---- ।"2
उपर्युक्त अभिलेखों में उल्लिखित अजितसेन का समय ई0 सन् 107 से ई0 सन् 1170 तक है । इस प्रकार तिरानबे वर्षों का काल, उनका कार्यकाल आता है । यदि इस कार्यकाल के पूर्व बीस - पच्चीस वर्ष की आयु के भी रहे हों तो उनका आयुकाल एक सौ अठारह वर्ष के करीब पहुंच जाता है । अभिलेखों मे स्पष्ट लिखा हुआ है कि विक्रम सान्तरदेव ने अजितसेन को मान्यता प्रदान की। इस प्रकार अजितसेन का समय ईसवी सन् की ग्यारहवी - बारहवी शती सिद्ध होता है । पर अलकार चिन्तामणि के रचयिता ने जिनसेन, हरिचन्द्र, वाग्भट, अर्हद्दास और पीयूष वर्ष आदि आचार्यों के श्लोक उद्धृत किये है । इन उल्लिखित आचार्यों
मद्रास व मैसूर प्रान्त के जैन स्मारक, पृ0स0 - 273, उद्धृत अचि० पृ0 - 30 । मद्रास व मैसूर प्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक, पृ० - 279 - उद्धृत अलकार चिन्तामणि प्रस्तावना - पृ0 - 301