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उक्त 'विना' पद के द्वारा
आचार्यों के मत मे विनोक्ति अलकार वहाँ होता है जहाँ किसी की चारूता या अचारूता का प्रतिपादन किया जाता है । 'बिना' शब्द के वाचक समस्त शब्दों के योग में यह अलकार सभव है ।
आचार्य अजितसेन के अनुसार जहाँ किसी वस्तु के असन्निधान से कोई वस्तु सुन्दर या असुन्दर प्रतीत हो वहाँ विनोक्ति अलकार होता है । इन्होंने शोभन विनोक्ति, तथा अशोभन विनोक्ति रूप से इसके दो भेद किए हैं 12 विनोक्ति के सम्बन्ध में प्राय सभी आचार्यों की परिभाषाएँ समान है ।
समासोक्ति
समासोक्ति का अर्थ है सक्षेप मे कथन अर्थात् जहाँ सक्षेप मे दो अर्थों का कथन किया जाए वहाँ समासोक्ति अलकार होता है 1 आचार्य भामह, दण्डी, उद्भट, वामन तथा भोज सक्षिप्त कथन में समासोक्ति को स्वीकार करते है । 3
आचार्य मम्मट के अनुसार जहाँ श्लिष्ट विशेषणों के द्वारा प्रकृ का कथन हो वहाँ समासोक्ति अलकार होता है । 4 आचार्य रुय्यक के अनुसार जहाँ विशेषणों का साम्य होने पर अप्रस्तुतार्थ की प्रतीति गम्य हो वहाँ समासोक्ति अलंकार होता है ।5 आचार्य अजितसेन के अनुसार जहाँ विशेषणों का साम्य होने के कारण प्रस्तुत अर्थ का वर्णन किया जाए और अप्रस्तुत अर्थ की प्रतीति हो वहाँ समासोक्ति अलकार होता है 16 इन्होंने श्लिष्ट विशेषणों के साम्य में तथा साधारण विशेषण के
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इय च न केवल विनाशब्दस्य सत्व एव भवत्यपि तु विनाशब्दार्थ वाचकमन्त्रस्य । तेन नञ् निर् वि अन्तरेण ऋते रहित विकलेत्यादि प्रयोगे इयमेव । ०ग०, पृ0 -577, उद्धृत चन्द्रालोक सुधा, हिन्दी टीका ।
असन्निधानतो यत्र कस्यचिद् वस्तुनोऽपरम् । वस्तु रम्यमख्य वा सा विनोक्तिरिति द्विधा ।।
(क) काव्या0, 2/79, (ख) का0दं०, 2/250, Ñग) 2/10, (६) काव्या० सू०, 4, 4, 3, (ड) स०क०भ०, 4/46 परोक्तिर्भेदकै श्लिष्टै समासोक्ति । का0प्र0, 10/97 विशेषणानां साम्यादप्रस्तुतस्य गम्यत्वेसमासोक्ति । प्रस्तुत वर्ण्यते यत्र विशेषणसुसाम्यत । अप्रस्तुत प्रतीयेत सा समासोक्तिरिष्यते ।
श्लिष्टविशेषणसाम्या साधारण विशेषणसाम्या चेति द्विधा ।
अ०चि०, 4/163 काव्या० सा०स०,
अ०स०, सू0 31
अ०चि०, 4 / 66 एवं वृत्ति