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आचार्य उद्भट कृत लक्षण भामह के समान है ।। आचार्य रुद्रट ने अतिशयोक्ति नाम से किसी एक स्वतंत्र अलकार के नाम का उल्लेख नहीं किया अपितु अतिशय वर्ग के 12 अलकारों का उल्लेख किया है । 2
आचार्य मम्मट कृत परिभाषा पूर्ववर्ती आचार्यों की अपेक्षा किचित् नवीन है । इनके अनुसार जहाँ उपमान द्वारा उपमेय का निगरण कर लिया जाए या प्रस्तुत पदार्थ का अन्य रूप मे वर्णन किया जाए अथवा यदि शब्द के अर्थ की उक्ति के द्वारा असभावितार्थ की कल्पना की जाए अथवा कार्य व कारण के पौर्वापर्य का विपर्य हो तो वहाँ अतिशयोक्ति अलकार होता है । 3
आचार्य अजितसेन के अनुसार जहाँ कवि की प्रौढ वाणी से उपमान के द्वारा उपमेय का निगरण कर लिया जाए वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है । कारिका मे प्रयुक्त 'विषयस्यतिरोधानात्' पद का आशय यह है कि जहाँ विषय अर्थात् उपमेय तिरोहित हो जाए, अर्थात् उपमान के द्वारा उसका निगरण कर लिया जाए वहाँ अतिशयोक्ति नामक अलकार होता है इन्होंने इसके चार भेदों का उल्लेख किया है
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आचार्य अजितसेन कृत परिभाषा मम्मट से भिन्न है इन्होंने कारणकार्य के पौर्वापर्य विपर्य मे तथा यद्यर्थ के कथन मे होने वाली अतिशयोक्ति का कथन नहीं किया 14
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भेद मे अभेद रूप अतिशयोक्ति
अभेद मे भेद रूप अतिशयोक्ति
असम्बन्ध मे सम्बन्ध रूप अतिशयोक्ति तथा
सम्बन्ध मे असम्बन्ध रूप अतिशयोक्ति
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काव्या० सा०स०, 2 / 111
रू0 काव्या0, 9/12
का0प्र0, 10/100, 101 कविप्रौढगिरा यत्र विषयी सुविरच्यते । विषयस्य तिरोधानात् सा स्यादतिशयोक्तिता ।। भेदेऽभेदस्त्वभेदे तु भेद सम्बन्ध के पुन । असबन्धस्त्वसबन्धे संबन्धस्सा चतुर्विधा ।।
अ०चि०, 4 / 155-52