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और अनुक्तनिमिता विशेषोक्ति अलकारों में वस्तु प्रतीयमान होकर काव्यालकारत्व को प्राप्त होती है ।
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प्रतीयमान औपम्य मूलक अलंकारः- परिणाम, सन्देह, रूपक, भ्रान्तिमान्, उल्लेख, स्मरण, अपह्नव, उत्प्रेक्षा, तुल्ययोगिता, दीपक, दृष्टान्त, प्रतिवस्तूपमा, व्यतिरेक, निदर्शना, श्लेष और सहोक्ति अलकारों में औपम्य प्रतीयमान रहता है । इस प्रकार अलकारों में सादृष्य - विभाग है ।
आचार्य अजितसेन ने अलंकारों का वर्गीकरण इस प्रकार किया है -
सादृश्यमूलक अलंकार - उपमा, अनन्वय, उपमेयोपमा, स्मरण, रूपक, परिणाम, सन्देह, भ्रान्तिमान, अपह्नुति, उल्लेख, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, सहोक्ति, विनोक्ति, समासक्ति, वक्रोक्ति, स्वभावोक्ति, व्याजोक्ति, मीलन, सामान्य, तद्गुण तथा अतद्गुण ।
विरोधमूलक अलकार - विरोध, विशेष, अधिक, विभावना, विशेषोक्ति, असगति, विचित्र, अन्योन्य, विषम तथा सम ।
गम्यौपम्यमूलक अलकार - तुल्योगिता, दीपक ।
वाक्यार्थमूलक अलंकार.- तथा श्लेष ।
तिवस्तूपमा, दृष्टान्त, निदर्शना, व्यतिरेक
विशेषण वैचित्र्य मूलक अलंकार - परिकर, परिकराकुर, व्याजस्तुति, अप्रस्तुतप्रशंसा, आक्षेप, पर्यायोक्त तथा प्रतीप ।
तर्कन्याय मूलक अलंकारः- अनुमान, काव्यलिंग अर्थान्तरन्यास, यथासख्य, अर्थापत्ति, परिसख्या तथा उत्तर ।
वाक्यन्यायमूलक अलंकार - विकल्प, समुच्चय, समाधि ।
लोक न्याय मूलक अलंकारः- भाविक, प्रेयस्, रसवत्, ऊर्जस्वी, प्रत्यनीक व्याघात, पर्याय सूक्ष्म, उदात्त तथा परिवृत्ति ।