________________
कुछ का अतिशय है और कुछ का श्लेष है ।' इन्हीं चार मूल आधारों पर उन्होंने अलकारों को चार वर्गों - वास्तव, औपम्य, अतिशय तथा श्लेष मे विभक्त किया
अलंकारों का वर्गीकरण -
ऐतिहासिक वर्गीकरण - सस्कृत वाड्मय के आचार्यों ने अलकारों के लक्षण पर तो अति विस्तृत विवेचन किया है किन्तु अलकारों के वर्गीकरण पर विशेष ध्यान नहीं दिया है । अलकारों के वैज्ञानिक वर्गीकरण के विषय में विचार करने वाले आचार्यों मे रुद्रट, रुय्यक, अजितसेन तथा विद्यानाथ प्रमुख है ।
___आचार्य रुद्रट के पूर्व अलंकारों का निरूपण भामह के काव्यालकार मे प्राप्त होता है किन्तु इनके द्वारा निरूपित अलंकारों मे कोई यौक्तिक क्रम नहीं है । बहुत सम्भव है कि इन्होंने पूर्ववर्ती आचार्यों के द्वारा निरूपित क्रम को ही स्वीकार किया हो क्योंकि काव्यालकार मे अनेक पूर्ववती आचार्यों का उल्लेख भी प्राप्त होता है।
आचार्य उद्भट ने छ वर्गों में अलकारों का निरूपण किया है किन्तु उन वर्गों का नामोल्लेख नहीं किया । प्रत्येक वर्ग के अन्त मे अनिश्चय वाचक सर्वनाम केचित् - कश्चित् आदि के द्वारा अलकारों का परिगणन करके उन्हें भिन्नभिन्न वर्गों मे रखा है । अत उद्भट कृत वर्गीकरण को वैज्ञानिक वर्गीकरण के रूप मे स्वीकार करना अनुपयुक्त प्रतीत होता है । अत भामह और उद्भट कृत वर्गीकरण को ऐतिहासिक वर्गीकरण के रूप में स्वीकार करना समीचीन प्रतीत होता है।
----------------------------------
अर्थस्यालकारा वास्तवमोपम्यमतिशय श्लेष । एशामेव विशेषा अन्ये तु भवन्ति नि शेषा ।।
रूद्रट - काव्यालंकार 7/9
क इत्येत एवालंकारा वाचां कैश्चिदुदाहृता ।
काव्यालकारसारसंग्रह 1/2
ख) समासातिशयोक्ति चेत्यलंकारानपरे बिदु ।
वही - 2/1
गए अपरेत्रीनलंकारान् गिरामाहुरलकृतौ ।
वही - 3/1